आज के लेख में, गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (जीवनी), कहानी, जीवन कथा, बुद्ध का इतिहास, जन्म, माता-पिता, पत्नि, उपदेश, मृत्यु, फोटो, बुद्ध पूर्णिमा, जयंती (Gautam Buddha Biography, Story, Life Story, History of Buddha, Birth, Parents, Wife, Sermon, Death, Photo, Buddha Purnima, Jayanti) के बारे में जानकारी हिंदी भाषा में बताई गई है.
Gautam Buddha Ka Jivan Parichay (Gautam Buddha Ki Jivni): भगवान गौतम बुद्ध के समस्त जीवन के बारे में आज आपको विस्तार से बताएंगे, क्योंकि भगवान बुद्ध के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है, खासकर पढ़ने वाले विद्यार्थीयो के लिए यह लेख बहुत महत्त्वपूर्ण होने वाला है, चलिए आपके मूल्यवान समय को ज्यादा ना ग्वाकार, गौतम गंभीर जीवनी या कहानी शुरू करते है.
Contents
- 1 गौतम बुद्ध की जीवनी Biography of Gautam Buddha in Hindi
- 2 गौतम बुद्ध का जीवन परिचय Goutam Buddha Ka Jivan Parichay
- 3 गौतम बुद्ध का शुरुआती जीवन
- 4 गौतम बुद्ध की शिक्षा, शादी, पत्नी, बच्चे
- 5 गौतम बुद्ध का वैराग्य (सन्यासी)
- 6 गौतम बुद्ध ग्रह त्याग
- 7 गौतम बुध को ज्ञान की प्राप्ति
- 8 प्रथम उपदेश (धर्म चक्र प्रवर्तन)
- 9 भगवान बुद्ध की मृत्यु (अंतिम समय)
- 10 बुद्ध पूर्णिमा, जयंती
- 11 बुद्ध धर्म के बारे में जानकारी, रोचक तथ्य
- 12 FAQ,s
गौतम बुद्ध की जीवनी Biography of Gautam Buddha in Hindi
नाम | बुद्ध (Buddha) |
पूरा नाम | गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) |
बचपन का नाम | सिद्धार्थ |
गोत्र | गौतम |
जन्म | 563 ई. पू. |
जन्मस्थल | लुम्बिनी वन नेपाल (वर्तमान रूम्मिनदेई, नेपाल) |
जयंती | वैशाख पूर्णिमा |
पिता का नाम | सुद्धोधन (शाक्यो के राज्य कपिलवस्तु के शासक) |
माता का नाम | महामाया देवी |
पालन-पोषण | गौतमी विमाता प्रजापति |
विवाह | 16 वर्ष की आयु में यशोधरा से (कोलिय गणराज्य की राजकुमारी) |
पुत्र का नाम | राहुल |
शिष्य का नाम | आनंद व उपालि (अप्प दीपो भव) |
ग्रह त्याग की घटना | 29वे वर्ष में महाभिनिष्क्रमण |
ध्यान गुरु | आलार कालाम |
प्रथम उपदेश (पाली भाषा) | स्थल ऋषि पत्तन के मृगदाव ( सारनाथ ) आचरण की शुद्धता स्थान वाली – पांच ब्राह्मण (पंचवर्गीय) घटना – धर्मचक्र प्रवर्तन |
अंतिम उपदेश | सुभद्र (कुशीनगर) (मल्ल) |
सारथी का नाम | चन्ना |
प्रिय घोड़ा | कंथक |
ज्ञान प्राप्ति | 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध कहलाए |
प्रथम वर्षावास | सारनाथ (गूलगंध कुटि बिहार) |
अंतिम वर्षवास | वैशाली (वेलुवग्राम, बिहार) |
ज्ञान प्राप्ति स्थल | गया (बोध गया, बिहार), निरंजना (फल्गु ) नदी का तट (घटना – सम्बोदी 35 वे वर्ष ज्ञान प्राप्ति) महाबोधि मंदिर |
बोधि वृक्ष | इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान के प्राप्ति |
8 धर्मप्रचार स्थल | अंग, मगध, काशी, मल्ल, शाक्य, वज्जि, कोशल राज्य |
मृत्यु (जीवन का अंत) | 483 ई. पू. कुशीनारा आयु – 80 वर्ष , दिन – वैशाख पूर्णिमा, स्थल – कुशीनगर (उत्तरप्रदेश), कसया गांव -महापरिनिर्वाण ( मृत्यु के बाद ) |
विशेष | बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति व महापरिनिर्वाण तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। |
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय Goutam Buddha Ka Jivan Parichay
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे। गौतम बुद्ध समर थे जिनकी शिक्षा पर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार था। गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी नामक स्थान में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर हुआ था। गौतम बुद्ध की माता का नाम महामाया था जो एक कोलीय वंश से थी, गौतम बुद्ध की मां महामाया का निधन बुद्ध के जन्म के 7 दिन बाद हो गया था। तब गौतम बुद्ध का पालन पोषण महारानी की छोटी बहन महाप्रजापति गौतमी ने किया था।
29 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने अपने नवजात शिशु राहुल और धर्म पत्नी यशोधरा को त्याग कर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाट का मोह त्याग कर वन की ओर चल दिए। कठिन परिश्रम की साधना के बाद गौतम बुद्ध को बोध गया (वर्तमानजेड बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई, और इस प्रकार गौतम बुद्ध सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुध बन गए।

गौतम बुद्ध का शुरुआती जीवन
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसवी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु (नेपाल) के निकट लुंबिनी वन में हुआ था। यह स्थान नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच स्थित नौतनवा स्टेशन से लगभग 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदेह जा रही थी, तो रास्ते में ही उन्हें प्रसव पीड़ा हुई और उन्होंने वही लुंबिनी वन में एक शिशु को जन्म दिया। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया, जिसका अर्थ है “वह जो सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्मा हो”। गौतम गोत्र में पैदा होने के कारण इन्हें गौतमी भी कहा जाता है।
सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के पिता का नाम शुद्धोधन था जो कि शाक्यों के राज्य कपिलवस्तु के शासक थे और माता का नाम महामाया देवी था। कहा जाता है कि सिद्धार्थ की माता महामाया देवी का निधन इनके जन्म के 1 सप्ताह (7 दिन) बाद ही हो गया था। और इनका पालन पोषण इनकी मौसी और महाराज सिद्धोधन की दूसरी रानी गौतमी विमाता प्रजापति ने किया था। सिद्धार्थ के जन्म उत्सव के दौरान, साधु दृष्टा आशिक ने अपने पहाड़ के आवास से घोषणा की – यह बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन ने पांचवे दिन एक नामकरण समारोह आयोजित किया और आठ ब्राह्मण विद्वानों को उनके पुत्र सिद्धार्थ का भविष्य पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। समारोह के दौरान सभी ब्राह्मण विद्वानों ने एक जैसी भविष्यवाणी की, कि यह बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पुरुष बनेगा।
गौतम बुद्ध का जन्म दिवस व्यापक रूप से थएरावदा देशों में मनाया जाता है। गौतम बुद्ध के जन्म की स्मृति में दक्षिण मध्य नेपाल में स्थित लुंबिनी में उस भूमि पर सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व एक स्तंभ बनवाया था। बालक सिद्धार्थ बहुत गंभीर और शांत स्वभाव का था। वह दयालु और दार्शनिक प्रवत्ति का था। उसका मन बचपन से ही दया और करुणा का स्त्रोत था। इसका परिचय उनके आरंभिक जीवन की अनेक घटनाओं से पता चलता है।
घुड़दौड़ के समय सिद्धार्थ जीती हुई बाजी भी हार जाते थे क्योंकि दौड़ के समय घोड़ों के मुंह से जाग निकलते हुए देखकर उनको ऐसा लगता था कि घोड़ा थक चुका है और वह अपने घोड़े को बीच में ही रोक देते थे। सिद्धार्थ को किसी को हराना या किसी को दुखी देखना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, इसलिए वे जीती हुई बाजी भी हार जाता था। एक बार सिद्धार्थ के चचेरे भाई ने तीर से एक हंस को घायल कर दिया था जिससे सिद्धार्थ काफी दुखी हुए और अंश की सहायता की और प्राण बचाए।
गौतम बुद्ध की शिक्षा, शादी, पत्नी, बच्चे
सिद्धार्थ के गुरु विश्वामित्र ने अपने शिष्य सिद्धार्थ को वेद, उपनिषद, राजकाज और युद्ध विद्या की शिक्षा दी थी। गुरु विश्वामित्र ने अपने शिष्य सिद्धार्थ को इतना मजबूत कर दिया था कि सिद्धार्थ तीर कमान, घुड़दौड़, कुश्ती में सब को परास्त करने में सक्षम हो गया था। सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की उम्र में यशोधरा नाम की कन्या के साथ हुआ, पिता द्वारा बनाए गए वैभवशाली और संपन्न भोगों से मुक्त महलों में सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा के साथ रहता था, जहां उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ था। पुत्र के जन्म के कुछ समय बाद ही सिद्धार्थ का मन वैराग्य की तरफ खींचने लगा और सिद्धार्थ ने सम्यक सुख-शांति के लिए अपने परिवार का त्याग कर दिया।
गौतम बुद्ध का वैराग्य (सन्यासी)
सिद्धार्थ के पिता (बुद्ध के पिता) राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के भोग विलास के लिए सभी प्रकार की पर्याप्त व्यवस्था करके रखी थी। राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए अलग-अलग ऋतु के हिसाब से अलग-अलग प्रकार के तीन बहुत ही सुंदर महल बनवाए थे। साथ ही सभी मनोरंजन की सामग्री एवं दास दास ज उनकी सेवा में रखे गए थे। सिद्धार्थ को सभी प्रकार की सुख सुविधाएं दी गई लेकिन सिद्धार्थ को यह सब चीजें संसार में बांधकर नहीं रख सकी। एक बार बसंत ऋतु की बात है जब 1 दिन सिद्धार्थ बगीचे मैं घूमने निकले, तभी उन्हें उसी बगीचे में एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया, जिसके दांत टूट गए थे, बाल सफेद हो गए थे, शरीर टेढ़ा हो चुका था, हाथ में लाठी और धीरे-धीरे कांपता हुआ सड़क पर चल रहा था। जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे मैं घूमने गए तभी उनके सामने एक बीमार व्यक्ति आ गया जिसकी सांसे तेजी से चल रही थी, कंधे ढीले पड़ गए थे, भुजाएं सूख गई थी, पेट फुला हुआ था, चेहरा भी पीला पड़ गया था एवं किसी दूसरे के सहारे में बड़ी मुश्किल से चल पाता था।
तीसरी बार जब सिद्धार्थ बगीचे में घूमने निकले तो वह देखते हैं कि, चार आदमी एक अर्थी को उठाकर ले जा रहे थे, उनके पीछे-पीछे बहुत सारे लोग थे कोई छाती पीट रहा था, कोई रो रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था, इन दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ बहुत ही विचलित हो चुके थे। तब उन्होंने सोचा कि धिक्कार है जवानी को जो शरीर को सोख लेती है, धिक्कार है जीवन को जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है, धिक्कार है स्वास्थ्य को जो शरीर को नष्ट कर देता है। वह मन ही मन सोचने लगे कि क्या बुढ़ापा बीमारी और मौत सदैव इसी तरह से होती रहेगी। सिद्धार्थ चौथी बार बगीचे की सैर करने निकले तो उनको एक सन्यासी दिखाई दिया, वह सन्यासी संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्न था, जिसको देखकर सिद्धार्थ बहुत आकर्षित हो गए थे।
गौतम बुद्ध ग्रह त्याग
बगीचे में चार बार घूमने निकले सिद्धार्थ को चारों बार अलग-अलग प्रकार के दृश्य देखने को मिले जिनसे वह विचलित हो गए थे और उनका ह्रदय मैं परिवर्तन आया। सिद्धार्थ अपने राज्य का मोह त्यागकर अपनी पत्नी यशोधरा, पुत्र, राहुल को छोड़कर यानी राज महल और परिवार को छोड़कर तपस्या के लिए चल पड़े।
सिद्धार्थ राजगृह (वर्तमान- मुंबई में, महाराष्ट्र) भिक्षा मांगी। योग-साधना सीखने के लिए सिद्धार्थ घूमते हुए आलार कालाम और उद्धव राम पुत्र के पास पहुंचे, जहां पर उन्होंने समाधि लगाना सीखा योग साधना करना सीखा लेकिन उससे भी सिद्धार्थ को संतोष नहीं हुआ। उसके बाद सिद्धार्थ उरुबेला गए एवं वहां पर तरह-तरह से तपस्या करने का प्रयास किया। सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) ने शुरू शुरू में सिर्फ तिल एवं चावल खाकर तपस्या शुरू की थी, लेकिन बाद में किसी भी प्रकार का कोई भी आहार लेना बंद कर दिया था। सिद्धार्थ को तपस्या करते-करते 6 साल बीत गए लेकिन सफलता नहीं मिली, इस दौरान सिद्धार्थ का शरीर सूखकर कांटा हो गया था।
1 दिन की बात है जब सिद्धार्थ के मार्ग में लौटती हुई कुछ महिलाएं दिखाई दी, जहां पर सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे, वह महिलाएं एक गीत गाते हुए जा रही थी कि – वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो, ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा, पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाए। यह बात सिद्धार्थ को बहुत अच्छी लगी और उनके मन में आया कि नियमित आहार विहार से ही योग सिद्ध होता है, किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती है एवं किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है, इसके लिए कठिन तपस्या करना पड़ती है।

गौतम बुध को ज्ञान की प्राप्ति
उत्तम बुध के प्रथम गुरु आलार कालाम थे, आलार कालाम ने सन्यास के समय गौतम बुद्ध को शिक्षा दी।
35 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे।
बुद्ध ने बोधगया (वर्तमान- बिहार) में निरंजना नदी के किनारे कठिन तपस्या की एवं एक सुजाता नाम की कन्या के हाथों से खीर खाकर अपना उपवास तोड़ा।
बोधगया के पास के गांव की एक महिला सुजाता को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी वह पुत्र की प्राप्ति के लिए एक पीपल वृक्ष से मन्नत पूरी करने के लिए सोने के ताल में गाय के दूध की खीर लेकर पहुंची थी। वहीं पर सिद्धार्थ ध्यान कर रहे थे उस महिला को लगा कि वृक्ष देवता ही मानो पजा लेने के लिए शरीर दर्द कर सामने आ गए हैं, सुजाता ने बड़े आदर और सम्मान से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई उसी तरह आप की भी हो। उसी रात्रि को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हो गई एवं सिद्धार्थ को सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया। उसी समय से सिद्धार्थ “बुद्ध” के नाम से कहलाने लगे, तभी से सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध के नाम से जाना जाता है।
भगवान बुद्ध ने जिस पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त व व बोधिवृक्ष के नाम से जाना जाने लगा या उसे तभी से बोधिवृक्ष कहते है। गया नाम का स्थान भी बोधगया के नाम से जाना जाने लगा।
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प्रथम उपदेश (धर्म चक्र प्रवर्तन)
गौतम बुद्ध 80 वर्ष की आयु तक अपने धर्म का प्रचार प्रसार उस वक्त की सरल लोकभाषा पाली में प्रचार कर रहे थे। गौतम बुध के सर्व धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी। लगभग 28 दिन तक बोधि वृक्ष के नीचे रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन मनन करने के बाद गौतम बुद्ध धर्म का उपदेश देने निकल पड़े।
गौतम बुद्ध ने पूर्णिमा को काशी के पास मृगदाव (वर्तमान सारनाथ) में प्रथम पांच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया एवं अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया।
महा प्रजापति बुद्ध की विमाता को सबसे पहले बौद्ध संघ में प्रवेश मिला था, आनंद बुध का प्रिय शिष्य था, भगवान बुद्ध आनंद को ही संबोधित करके अपने उपदेश देते थे।
भगवान बुद्ध की मृत्यु (अंतिम समय)
गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ई. पू. करीब 80 वर्ष की आयु में कुशीनारा नामक स्थान (वर्तमान – उत्तर प्रदेश) पर वैशाखी पूर्णिमा के दिन हुई थी।
गौतम बुद्ध ने अपनी मृत्यु से पहले घोषणा की थी कि वह जल्दी परी निर्माण के लिए रवाना होंगे। भगवान बुद्ध ने अपना आखिरी भोजन कुंडा नामक एक लोहार व्यक्ति से वेट के रूप में प्राप्त किया था।

बुद्ध पूर्णिमा, जयंती
बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति व महापरिनिर्वाण तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान बुध का जन्म हुआ था एवं कठिन तपस्या के बाद बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी।
बुद्ध धर्म के बारे में जानकारी, रोचक तथ्य
गौतम बुद्ध के द्वारा किए गए धर्म प्रचार से व्यक्तियों की संख्या अधिक होने लगी थी। राजा महाराजा भी गौतम बुद्ध के शिष्य बनने लगे एवं उनसे ज्ञान प्राप्त करने लगे। जब भिक्छुओ की संख्या अधिक होने लगी तब बौद्ध संघ की स्थापना की गई। कुछ समय पश्चात लोगों के निवेदन करने पर भगवान बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में लेने की इजाजत दे दी थी।
भगवान बुद्ध ने अपने धर्म का देश और विदेशों में प्रचार करने के लिए अपने भिकछुओ को भेजा था। भारत के महान सम्राट अशोक ने भी कलिंग युद्ध हृदय परिवर्तन के पश्चात बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था। इसी के चलते बौद्ध धर्म श्रीलंका, थाईलैंड, मंगोलिया, जापान और कोरिया आदि देशों में भी फैल चुका था।
FAQ,s
Q- बुद्ध का जन्म कब हुआ?
Ans-563 ई.पू. में वैशाख पूर्णिमा को लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था।
Q- गौतम बुद्ध की मृत्यु कब हुई?
Ans- 483 ईसा पूर्व में, वैशाख पूर्णिमा के दिन।
निष्कर्श-
आज के लेख में हमने आपको बताया कि, गौतम बुध का जन्म कब हुआ था? गौतम बुद्ध के पिता का नाम क्या है, गौतम बुद्ध की माता का नाम क्या है, गौतम बुद्ध के उपदेश क्या थे, गौतम बुद्ध के गुरु का नाम क्या है?, बुद्ध पुर्णिमा कब मनाई जाती है।
Mahatma Buddh Ka Jivan Parichay से संबंधित आज के इस लेख में भगवान गौतम बुद्ध के जीवन की समस्त घटनाओं पर जानकारी बताई गई है, अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तो इस आर्टिकल “गौतम बुद्ध जीवनी” नीचे कमेंट बॉक्स में अपना प्रश्न भेजें आपको उत्तर देने की जरूर कोशिश करेंगे।

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