HindiNote पर आपका स्वागत है। आज आपको “भारत में भ्रष्टाचार पर निबंध – Essay on corruption in india in Hindi (1000) PDF” के बारे में निबंध के द्वारा बताएंगे।
भारत में भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण और निवारण पर निबंध PDF इन हिंदी काफी रिसर्च कर कक्षा 4,5,6,7,8,9,10, 11 और 12 के स्टूडेंट्स के लिए 500, 600, 700, 800, 900 और 1000 शब्दों में तैयार किया गया है। Bhrashtachar par nibandh को अगर आप ध्यान से पढ़ेंगे तो यकीनन मानिए आप परीक्षा में अच्छे नंबर ला पाएंगे। हमारे देश में हो रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज भी उठाएंगे। लेकिन इसके लिए जरूरी है ज्ञान जो आपको Bharat Me bhrashtachar par nibandh in Hindi पीडीएफ से आपको समझ में आ जायेगा।
भ्रष्टाचार पर निबंध, कारण और निवारण
प्रस्तावना :- भ्रष्टाचार दो शब्दों; भ्रष्ट और आचार; के मेल से बना शब्द है। ‘भ्रष्ट’ शब्द के कई अर्थ होते हैं- मार्ग से विचलित, ध्वस्त एवं बुरे आचरण वाला तथा ‘आचरण’ का अर्थ है ‘चरित्र’, ‘व्यवहार’ या ‘चाल-चलन’। इस तरह भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ – अनुचित व्यवहार एवं चाल-चलन। विस्तृत से समझे तो इसका तात्प्य व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले ऐसे अनुचित कार्य से है, जिसे वह अपने पद का लाभ उठाते हुए आर्थिक या अन्य लाभों को प्राप्त करने के लिए स्वार्थपूर्ण ढंग से करता है। इसमें व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तिगत लाभ के लिए निर्धारित कर्तव्य की जान-बूझकर अवहेलना करता है। रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थं में मिलावट, मुनाफाखोरी, अनैतिक ढंग से धन-संग्रह, कानूनों की अवहेलना करके अपना उल्लू सीधा करना आदि भ्रष्टाचार के रूप हैं, जो भारत ही नहीं दुनिया भर में व्याप्त हैं।
भारत में भ्रष्टाचार
भारत में भ्रष्टचार चर्म सीमा पर है इसमें कोई दो राय नही है। हर साल विश्व में सबसे ज्यादा भ्रष्ट्राचार होने वाली देशो की सूचि जारी होती है, जिसमें भारत का नाम भी ऊपर आता है जो कि एक निराशाजनक बात है।
भारत में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। ऐतिहासिक ग्रन्थों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। चाणक्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में भी विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों का उल्लेख किया है। हर्षवर्धन-काल एवं राजपत-काल में सामन्ती प्रथा ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। सल्तनत काल में फिरोज तुगलक के शासन में सेना में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के प्रमाण मिलते हैं। हाँ, भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी के मामले मुगल-काल में दिखे और ब्रिटिश-काल के दौरान इसने भारत में अपनी जड़ें पूरी तरह जमा लीं।
दुनिया में भ्रष्टाचार
विभिन्न राष्ट्रों में भ्रष्टाचार की स्थिति का आकलन करने वाली स्वतन्त्र अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ‘द्रान्सपरेन्सी
इन्टरनेशनल’ द्वारा वर्ष 2010 में जारी रिपोर्ट के अनुसार 178 देशों की सूची में भारत का 8 वां स्थान है। यह रिपोर्ट 0-10 स्केल वाले करप्शन परसेप्शन इन्डेक्स (CP) के आधार पर निर्धारित की गई हैं। इसके अनुसार जिसे देश के सी.पी.आई. का मान जितना अधिक होता है, वह देश उतना ही कम भ्रष्ट माना जाता है।
जिस देश का सी. पी. आई. मान जितना कम होता है, उस देश में भ्रष्टाचार उतना ही अधिक होता है। डेनमार्क सी.पी.आई. के कुल 10 में से 9.3 अंक के साथ सबसे कम भ्रष्ट राष्ट्र के रूप में 178 देशो की इस सूची में सबसे ऊपर तथा सोमालिया 1.1 अंक के साथ सर्वाधिक भ्रष्ट राष्ट्र के रूप में सबसे नीचे है। न्यूजीलैण्ड एवं सिंगापुर 9.3 अंको के साथ क्रमशः दूसरे एवं तीसरे नम्बर पर हैं। भारत को 10 में से 3.3 अंक मिले हैं। इसका अर्थ है कि यह दुनिया के सर्वाधिक भ्रष्ट राष्ट्रों में से एक है। इससे पहले सन् 2009 में जारी 180 देशों की इस सूची में भारत 3.4 अंकों के साथ 84वें नम्बर पर था, किन्तु राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन में हुए श्रष्टाचार के बाद यह फिसल कर और नीचे आ गया। भ्रष्टाचार के मामले में विकसित देश भी पीछे नहीं हैं। इस सूची में
ऑस्ट्रेलिया 87 अंक के साथ 8वें स्थान पर, इंग्लैण्ड 76 अंक के साथ 20वें स्थान पर और अमेरिका 7.1 अंक
के साथ 22वें स्थान पर है।
भ्रष्टाचार की व्यापकता
आज धर्म, शिक्षा , राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन, खेल-कूद इत्यादि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पाँव फैला दिए हैं। मोटे तौर पर देखा जाए, तो भारत में भ्रष्टाचार के निम्नलिखित कारण हैं-
- धन की लिप्सा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है।
- नौकरी-पेशा व्यक्ति अपने सेवा- काल में इतना धन अर्जित कर लेना चाहता है, जिससे सेवानिकृत्ति के बाद का उसका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो सके।
- व्यापारी वर्ग सोचता है कि न जाने कब घाटे की स्थिति आ जाए, इसीलिए जैसे भी उचित- अनुचित तरीके से अधिक से अधिक धन कमा लिया जाए।
- औद्योगीकरण ने अनेक विलासिता की वस्तुओं का निर्माण किया है। इनको सीमित आय में प्राप्त करना सबके लिए सम्भव नहीं होता इनकी प्राप्ति के लिए भी ज्यादातर लोग भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होते है।
- कभी-कभी वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण भी कनिष्ठ अधिकारी या तो अपनी भलाई के लिए इसका विरोध नहीं करते या न चाहते हुए भी अनुचित कार्यों में लिप्त होने को विवश हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार में वृद्धि के कारण
इन सबके अतिरिक्त गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी कार्यो का विस्तृत क्षेत्र, महंगाई, नौकरशाही का विस्तार, लालफीताशाही, अल्प वेतन, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों को सजा में देरी, अशिक्षा, अत्यधिक प्रतिस्पद्धा, महत्वाकाॉक्षा इत्यादि कारणों से भी भारत में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है।
भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम
भ्रष्टाचार की वजह से जहाँ लोगों का नैतिक एवं चारित्रिक पतन हुआ है, वहीं दूसरी ओर देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। आज भ्रष्टाचार के फलस्वरूप अधिकारी एवं व्यापारी वर्ग के पास काला धन अत्यधिक मात्रा में इकट्ठा हो गया है। इस काले धन के कारण अनैतिक व्यवहार, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, तस्करी एवं अन्य अपराधों में वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार के कारण लोगों में अपने उत्तरदायित्व से भागने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
देश में सामुदायिक हितों के स्थान पर व्यक्तिगत एवं स्थानीय हितों को महत्त्व दिया जा रहा है। सम्पूर्ण समाज
भ्रष्टाचार की जकड़ में है। सरकारी विभाग भ्रष्टाचार के अडडे बन चूके हैं। कर्मचारीगण मौका पाते हैं। अनुचित लाभ उठाने से नही चूकते राजनीतिक स्थिरता एवं एकता खतरे में है। नियम हीनता एवं कानूनों की अनुचित लाभ उठाने अवहेलना में वृद्धि हो रही है। भ्रष्टाचार के कारण आज देश की सुरक्षा के खतरे में पड़ने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अतः जरूरी है कि इस पर जल्द से जल्द लगाम लगायी जाए।
भ्रष्टाचार के निवारण
भ्रष्टाचारियों के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान है तथा समय-समय पर भ्रष्टाचार के निवारण के लिए समितियाँ भी गठित हुई है और इस समस्या के निवारण के लिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून
भी पारित किया जा चुका है, फिर भी इसको अब तक नियन्त्रित स्थापित नहीं किया जा सका है। इस समस्या
के समाधान हेतु निम्नलिखित बातो का पालन किया जाना आवश्यक है, जो कि निम्नानुसार है –
- सबसे पहले इसके कारणों मसलन गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि को दूर किया जाना चाहिए।
- सूचना के अधिकार का प्रयोग कर विभिन्न योजनाओं पर जनता की निगरानी भ्रष्टाचार को मिटाने में कारगर साबित होगी, इसके कई उदाहरण हमें हाल ही में मिल चुके हैं।
- भ्रष्ट अधिकारियों को सजा दिलवाने के लिए दण्ड-प्रक्रिया एवं दण्ड संहिता में संशोधन कर कानून को और कठोर बनाए जाने की आवश्यकता है।
- भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाए जाने की जरूरत है। इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, कानूनी एवं प्रशासनिक उपाय अपनाए जाने चाहिए।
- जीवन-मूल्यों की पहचान कराकर लोगों को नैतिक गुणों, चरित्र एवं व्यावहारिक आदर्शों की शिक्षा द्वारा भी भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए।
- दागदार एवं भ्रष्ट लोगों को इसी तरीके से उच्च परदों पर आसीन होने से रोका जा सकता है।
- भ्रष्टाचार देश के लिए कलंक है और इसको मिटाए बिना देश की वास्तविक प्रगति सम्भव नहीं है।
उपसंहार –
भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लोकपाल विधेयक की मांग कर रहे अन्ना हजारे या काले धन की स्वदेश वापसी की मांग कर रहे बाबा रामदेव इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहे है। ऐसे प्रयासों को जनसामान्य को यथाशक्ति समर्थन प्रदान करना चाहिए। समाज को यथाशीघ्र कठोर से कठोर कदम उठाकर इस कलंक से मुक्ति पाना नितान्त आवश्यक है, अन्यथा मानव-जीवन बद से बदतर होता चला जाएगा।
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FAQ,s
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Q- भ्रष्टाचार का मुख्य कारण क्या है?
Ans – गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी कार्यो का विस्तृत क्षेत्र, महंगाई, नौकरशाही का विस्तार, लालफीताशाही, अल्प वेतन, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों को सजा में देरी, अशिक्षा, अत्यधिक प्रतिस्पद्धा, महत्वाकाॉक्षा इत्यादि कारणों से भी भारत में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है।
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Q- भ्रष्टाचार कैसे बढ़ता है?
Ans – धन की लिप्सा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है।नौकरी-पेशा व्यक्ति अपने सेवा- काल में इतना धन अर्जित कर लेना चाहता है, जिससे सेवानिकृत्ति के बाद का उसका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो सके।व्यापारी वर्ग सोचता है कि न जाने कब घाटे की स्थिति आ जाए, इसीलिए जैसे भी उचित- अनुचित तरीके से अधिक से अधिक धन कमा लिया जाए।औद्योगीकरण ने अनेक विलासिता की वस्तुओं का निर्माण किया है। इनको सीमित आय में प्राप्त करना सबके लिए सम्भव नहीं होता इनकी प्राप्ति के लिए भी ज्यादातर लोग भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होते है।कभी-कभी वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण भी कनिष्ठ अधिकारी या तो अपनी भलाई के लिए इसका विरोध नहीं करते या न चाहते हुए भी अनुचित कार्यों में लिप्त होने को विवश हो जाते हैं।
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