महाराणा प्रताप का जीवन परिचय जन्म, मृत्यू, किला, Maharana Pratap Biography in Hindi

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, जन्म, मृत्यू, किला, Maharana Pratap Biography in Hindi

आर्टिकल में महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, इतिहास (Maharana Pratap Biography, Hostory in Hindi), जन्म, मृत्यू, युद्ध, किला, चेतक घोड़ा, तलवार, पत्नियां, बच्चे, पूरा नाम के बारे में जानकारी दी गई है।

चित्तौड़गढ़ के महाराणा प्रताप की जीवनी (Biography of Maharana Pratap in Hindi) लेख में महाराणा प्रताप का इतिहास, जीवन चरित्र, जीवन गाथा से जुड़े सभी प्रश्नों के उत्तर बताए गए हैं, जैसे कि महाराणा प्रताप सिंह का जीवन परिचय – महाराणा प्रताप की जीवनी – महाराणा प्रताप का इतिहास – महाराणा प्रताप को किसने मारा – महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी – महाराणा प्रताप के कितने बच्चे थे और महाराणा प्रताप का पूरा नाम तथा उनके द्वारा लड़े गए सभी युद्ध – महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा आदि।

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महाराणा प्रताप का जीवन परिचय (जीवनी) । Maharana Pratap Biography in Hindi

हमनें आपकी सुविधा के लिए महाराणा प्रताप के जीवन परिचय और इतिहास को आगे दी गई टेबल में अच्छे से बताया है : –

नाम महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)
पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
बचपन का नामकीका
जन्म तिथि9 मई, 1540 ई. (ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597)
जन्म भूमि (स्थान)कुम्भलगढ़, राजस्थान
राज्य मेवाड़ (वर्तमान – राजस्थान)
राजधानी उदयपुर
राजघरानाराजपूताना
शासनकाल1568–1597 ई. (29 वर्ष)
वंश सूर्यवंश
जातिसिसोदिया
धर्महिंदू
पिता का नामश्री महाराणा उदयसिंह जी
माता का नामजयवंता बाई
पत्नियां महाराणा प्रताप की कुल 11 पत्नियां थी।
संतान22 (17 पुत्र और 5 पुत्रियाँ)
भाई-बहन 3 भाई (विक्रम सिंह, शक्ति सिंह, जगमाल सिंह),
2 सौतेली बहने (चाँद कँवर, मन कँवर)
उत्तराधिकारीराणा अमर सिंह
प्रमुख युद्धमहाराणा प्रताप मुगल बादशाह अकबर के विरुद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध 1576 में और दिवेर का युद्ध 1582 में लड़े थे।
महाराणा प्रताप की उपाधियांहिंदुशिरोमणी, महाराणा
शारीरिक शक्तिवजन 110 किग्रा, लम्बाई 7 फीट 5 इंच।
हथियारों का वजनभाले का वजन 81 किलो, कवच का वजन 72 किलो,
ढाल और 2 तलवार का वजन मिलाकर
कुल 208 किलो हथियारों का वजन।
राज्याभिषेक कब और कहाँ हुआ28 फरवरी, 1572 में गोगुन्दा में।
सेनापतिहकीम खां सूरी
महाराणा प्रताप के घोड़े का नामचेतक (26 फीट का नाला लांघने और चोट लगने से मृत्यु)
युद्ध नीति गुरिल्ला (छापामार) युद्ध
महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़
हरावल दस्ताहकीम खां सूरी, रामदास मेडतिया, रामशाह तंवर,
मानसिंह सोनगरा, रामदास राथौड़, रावत किशनदास,
झाला मान, भीम सिंह डोडिया, झाला बीड़ा
गुरु का नामआचार्य राघवेंद्र
मृत्यु कब हुई (पुण्यतिथि)19 जनवरी 1597 (माघ शुक्ल एकादशी के दिन विक्रम संवत 1653)
महाराणा प्रताप को किसने मारामहाराणा प्रताप को किसी ने भी मारा नहीं बल्कि उनकी मृत्यु
धनुष की डोर खींचते समय आंत में चोट लग जाने की वजह से हुई।
महाराणा प्रताप की मृत्यु स्थान चावंड, राजस्थान
जयंती9 मई
Maharana Pratap Biography in Hindi

महाराणा प्रताप का परिचय जीवनी

महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ के सिसोदिया वंश के राजा था, उन्हें आज भी उनके शौर्य के लिए याद किया जाता है.एक ओर जहाँ मुगल बादशाह ने लगभग पूरे भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था लेकिन वह महाराणा प्रताप के होते हुए कभी भी मेवाड़ राज्य पर कब्जा नहीं कर पाया था. महाराणा प्रताप का पूरा संघर्ष से भरा जीवन देशभक्ति, साहस, पराक्रम, त्याग का पर्याय रहा है। अपनी वीरता, देशप्रेम और धर्म की रक्षा के लिए उन्हें ‘महाराणा’ और ‘हिन्दू शिरोमणि’ उपाधि मिली।

महाराणा प्रताप का जन्म

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, सन 1540 ई.(ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597) में मेवाड़ (राजस्थान) के कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदयसिंह था और माता का नाम जयवंता बाई था। 

महाराणा प्रताप का शुरूआती जीवन और शिक्षा

महाराणा प्रताप का आरंभिक जीवन भील समुदाय के साथ बीता, वे भीलों के साथ ही वे युद्ध कला को सीखते थे. महाराणा प्रताप बचपन से ही निडर थे, उनके गुरु आचार्य राघवेंद्र ने उन्हें शिक्षा दी और उन्हें एक बेहतरीन कूटनीतिज्ञ, साहसी योद्धा, और धर्म का रक्षक बनाया। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका कहकर पुकारते थे क्योंकि वे भील लोगों के साथ खेलते कूदते थी और भील अपने पुत्र को कीका कहते थे इसलिए भील महाराणा को भी कीका कहते थे। महाराणा प्रताप ने बचपन से ही तीर-कमान, तलवार भाला आदि चलाना सीख लिया था।

महाराणा प्रताप की शारीरिक शक्ति

महाराणा प्रताप का कद लगभग 7 फुट 5 इंच था उनका वजन 110 किलो ग्राम के लगभग था। महाराणा प्रताप के सुरक्षा कवच का वजन लगभग 72 किलोग्राम था और उनके भाले का वजन 81 किलो था। महाराणा प्रताप की 2 तलवार, ढाल, भाले, सुरक्षा कवच आदि को मिलाने पर उन सभी का कुल वजन लगभग 208 किलोग्राम था यानि कि महाराणा प्रताप 208 किलोग्राम वजन के साथ युद्ध करने जाते थे। महाराणा प्रताप के ये सभी हथियार आज भी उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं।

महाराणा प्रताप का परिवार, पत्नियां, बच्चे 

महाराणा प्रताप के पिता राणा उदयसिंह की 7 रानियाँ थी, जिनके 24 लड़के थे। सागर सिंह, जगमाल, मानसिंह, शक्ति सिंह, जेत सिंह, खान सिंह, राय सिंह, अगर,विरम देव, नारायणदास, सुलतान, सिंहा, लूणकरण, पच्छन, सरदूल, भव सिंह, बेरिसाल, साहेब खान, महेशदास, रुद्र सिंह, नेतसी, चंदा महाराणा प्रताप के भाई थे। महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादियाँ की थी उन पत्नियों से उन्हें 22 संतान की प्राप्ति हुई जिनमें उनके 17 बेटे थे और 5 बेटी, आइये राणा प्रताप की रानियों और उनके पुत्रों-पुत्रियों के नाम जानते हैं –

  • महारानी अजबदे पंवार – अमरसिंह और भगवानदास
  • फूलबाई राठौर – चंदा सिंह और शेखा सिंह 
  • अमरबाई राठौर – नत्था
  • शहमति बाई हाडा – पूरनमल 
  • अलमदेबाई चौहान – जसवंत सिंह
  • खीचर आशाबाई – हत्थी और राम सिंह
  • रत्नावती बाई परमार – माल, गज, क्लिंगु
  • जसोबाई चौहान – कुंवर कल्याणदास
  • चंपाबाई जंथी – कुंवर बच्चा सिंह, सनवालदास और दुर्जन सिंह
  • सोलंकीनी बाई – सहजमल और गोपाल
  • लखाबाई – रायभाना

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

महाराणा प्रताप के पिता राणा उदयसिंह की भी 7 रानियाँ थी जिनमें से एक रानी धीर बाई भी थी, राणा उदयसिंह को वे बहुत प्रिय थी। राणा उदयसिंह और धीर बाई के बेटे का नाम जगमाल राणा था, और धीर बाई उसे ही राजा बनाना चाहती थी। लेकिन मेवाड़ के सामंत, राजपुरोहित और प्रजा जगमाल को राजा की गद्दी के लिए अयोग्य मानती थी। 

सन 1567 में अकबर ने चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण कर दिया और उस युद्ध में राजा उदयसिंह को किले से सुरक्षित निकलकर अरावली के जंगलों में छिपना पड़ा। राणा उदयसिंह ने सन 1572 में अपनी मृत्यु के समय अपनी छोटी रानी के पुत्र जगमाल को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 

28 फरवरी सन 1572 ई. में राणा उदयसिंह की मृत्यु हो गयी। राणा उदय सिंह का अंतिम संस्कार क्रिया करने के बाद राज दरबारियों, सामंत और राजपुरोहित ने राणा जगमल को राजगद्दी से उतारकर महाराणा प्रताप को राजा घोषित कर दिया। और इस तरह 28 फरवरी सन 1572 ई. में गोगुंदा की पहाड़ियों में महाराणा प्रताप का पहला राज्याभिषेक हुआ और फिर 1 मार्च 1573 को दूसरी बार राजतिलक कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ।

 इस घटना के बाद राणा जगमाल गुस्से में मुगलों के साथ जाकर मिल गया और उसने मेवाड़ की सारी महत्वपूर्ण जानकारियां अकबर को बता दी। अकबर ने जगमाल को इसके बदले में जहाजपुर की जागीर भेंट स्वरूप दे दी। 

महाराणा प्रताप के प्रमुख युद्ध

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़ें, उनमें से हल्दीघाटी का युद्ध और दिवेर का युद्ध बहुत भीषण हुआ था जिस वजह से ये युद्ध इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं। 

चित्तौड़गढ़ का युद्ध 

मुगल बादशाह अकबर हमेशा अपने राज्य के विस्तार को ज्यादा से ज्यादा करना चाहता था। इस वजह से उसने पहले 1566 में महाराणा प्रताप के चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण किया लेकिन इस बार वह असफल रहा।
 
अगली बार 1567 ईस्वी में फिर से चित्तौड़गढ़ पर अकबर की सेना ने आक्रमण कर दिया और इस समय अकबर ने किले के चारों ओर से घेराबंदी कर दी थी। राणा उदयसिंह समेत उनके पूरे परिवार और महाराणा प्रताप को किले के अंदर बंद हो गये और यह घेराबंदी 20 अक्टूबर 1567 से 23 फ़रवरी 1568  तक चली और बंद किले में खाने पीने की व्यवस्था न हो पाने के कारण आखिर में उदय सिंह और उसके परिवार को राज महल से सुरक्षित बाहर निकलना पड़ा। सारी राजपूतानियो ने इस युद्ध में किले के अंदर जौहर कर लिया था और कई वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हुये थे। इस युद्ध में अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।

महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी का युद्ध
जब महाराणा प्रताप के मेवाड़ के राजा बने तो मेवाड़ को भी अपने अधीन करने के उद्देश्य से अकबर ने अपने कई दूतों जैसे जलाल खान कुरची, मानसिंह, भगवंत दास, टोडर मल राणा प्रताप के पास भेजा लेकिन राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया। क्रोधित होकर 18 जून 1576 में अकबर ने मान सिंह के नेतृत्व में अपनी सेना की एक टुकड़ी भेजी जिसमें लगभग 80,000 सैनिक थे और महाराणा प्रताप के पास लगभग 20,000 सैनिक ही थे और उनकी सेना का सेनापति हकीम खाँ सूरी को बनाया गया था। अकबर की सेना और महाराणा प्रताप की सेना के बीच यह युद्ध हल्दीघाटी के मैदान में लगभग 3 घंटे चला, इस युद्ध में महाराणा प्रताप के लगभग 1600 सैनिक, उनका प्रिय घोड़ा चेतक और ग्वालियर के राजाराम शाह और उनके 3 बेटे जयमल, राम सिंह व वीरभाला सिंह शहीद हो गये। 

इस युद्ध में मुगल सेना के 150 से अधिक सैनिक मारे गये और  350 से अधिक घायल हो गये थे। हल्दीघाटी के इस युद्ध में महाराणा प्रताप का घोडा चेतक उन्हें युद्ध क्षेत्र से दूर सुरक्षित ले जाता है और एक 26 फीट दरिया को एक ही छलांग में पार करने पर चोट लग जाने के कारण चेतक की मृत्यु हो जाती है। इस युद्ध में महाराणा प्रताप सुरक्षित तो निकल चुके थे लेकिन इस युद्ध में मान सिंह की सेना की विजय हो गयी थी। महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ अरावली की पहाड़ी में ही थे और वर्ष 1578 से 1585 तक मुगल सैनिक उन्हें ढूढ़ते रहे। महाराणा प्रताप और उनका परिवार कई सालों तक कंदमूल खाकर इधर-उधर भटकते रहे और गुरिल्ला युद्ध करते रहे। महाराणा प्रताप को जंगल में घास की रोटियां तक खानी पड़ी थी।

दिवेर का युद्ध

महाराणा प्रताप के जीवन में 1582 का दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध रहा है। महाराणा प्रताप को इस इस युद्ध में अपने खोए हुए कई किलों को वापस पाने में सफलता मिली थी। महाराणा प्रताप ने भामाशाह के द्वारा मिल धन राशि से अरावली के मनकियावस के जंगलों में दिवेर युद्ध की योजना बनाई थी और उन्होंने एक बड़ी फौज तैयार कर ली थी। घने जंगल, उबड़-खाब पहाड़ी रास्ते, भीलों, राजपूत और  स्थानीय निवासियों के लिए गुरिल्ला युद्ध करने के लिए अनुकूल थे, महाराणा प्रताप की इस फौज ने मुगल सैनिक की टुकड़ियों के हथियार और रसद आदि लूट कर उनकी हालत खराब कर दी थी।

दिवेर के युद्ध का नेतृत्व अकबर के चाचा सुल्तान खां कर रहा था। इस तरफ से महाराणा प्रताप और उनका पुत्र अमर सिंह इस युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे। दिवेर के इस युद्ध में बचे कुचे 36000 मुगल सैनिकों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया था। दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई और उन्होंने मोही, गोगुंदा, कुम्भलगढ़, बस्सी, चावंड, जावर, मदारिया, माण्डलगढ़ जैसे कई महत्वपूर्ण ठिकानों पर अपना कब्ज़ा कर लिया था।   

महाराणा प्रताप की कहानियां

महाराणा प्रताप के जीवन के कई रोचक किस्से भी हैं जिन्हें आपको जरूर जानना चाहिए –

विरोधी भारी शक्ति सिंह ने बचाई जान 

महाराणा प्रताप के एक भाई शक्ति सिंह की महाराणा प्रताप के साथ बनती नहीं थी, क्योंकि वह राजगद्दी पर बैठना चाहता था पर राजगद्दी योग्य राजकुमार महाराणा प्रताप को मिल गयी थी, इस वजह से शक्ति सिंह राणा प्रताप से नफरत करता था और इसका बदला लेने के लिए वह हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना की तरफ से महाराणा प्रताप के विरुद्ध लड़ रहा था। लेकिन युद्ध के दौरान उसके हृदय में अपने देश और अपने भाई महाराणा प्रताप के प्रति प्रेम की भावना जाग उठती है। जब वह चेतक पर सवार घायल और लहुलुहान राणा प्रताप के पीछे 2 मुगल सैनिकों मुल्तान खां और खुरासान खां को दौड़ते हुए देखता है तब वह उन दोनों सैनिकों को मार कर महाराणा प्रताप की जान बचाता है। लेकिन एक दरिया पार करने के कारण चेतक की मृत्यु हो जाती है, फिर शक्ति सिंह और महाराणा प्रताप दोनों मिलकर चेतक का दाह-संस्कार करते हैं। शक्ति सिंह महाराणा प्रताप से क्षमा मांग लेता है और अपने घोड़े को महाराणा प्रताप को सौंप देता है।

घास की रोटियां खाना 

महाराणा प्रताप जब अरावली के जंगल में भटक रहे थे तब एक दिन उनके पीछे मुगल सैनिक हाथ धोकर पड़े हुए थे, उस दिन उन्होंने पांच बार भोजन पकाया लेकिन हर बार उन्हें भोजन को छोड़कर भागना पड़ा. फिर राणा प्रताप की पत्नी और उनकी पुत्रवधू ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियां बनाई और फिर सभी ने उन रोटियों को खाया और उनमें से शेष बची हुई रोटियां दूसरे दिन के लिए रख दी गईं। तभी महाराणा प्रताप को अपनी बेटी के चिल्लाने की आवाज आती है और वो देखते हैं कि एक बिल्ली उनकी बेटी के हाथ से घास की रोटी छीन कर भाग गई है। उनकी बेटी भूख से व्याकुल होकर रोने लगती है और यह देखकर राणा प्रताप का दिल बैठ गया। कहा जाता है कि इस दृश्य को देखकर राणा प्रताप ने अकबर से एक चिट्ठी के जरिये अकबर से मिलने की इच्छा जता दी थी। पर असल में राणा प्रताप ने कभी भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।

महाराणा प्रताप का घोड़ा कैसे मरा

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक बहुत समझदार और फुर्तीला था। चेतक की ऊंचाई भी काफी थी और कद-काठी में वह एक विशालकाय घोड़ा था, इस वजह से उसको हाथी की सूंड लगाते थे, ताकि युद्ध में सामने आने वाले हाथी को भी चेतक का भय लगे। 1576 के हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच युद्ध चल रहा था और इस युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप बुरी तरह से घायल हो चुके थे, मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगी हुई थी तभी चेतक ने घायल होते हुए राणा प्रताप को अपनी पीठ पर लिए हुए 26 फीट लम्बा नाला एक छलांग में पार कर लिया था, इस नाले को मुगल सैनिक पार न कर सके और इस तरह चेतक ने महाराणा प्रताप की जान को बचाया था। लेकिन इतने लम्बे नाले को लांघते समय चेतक भी घायल हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। राजसमंद जिले के हल्दी घाटी गाँव में आज भी चेतक का स्मारक और समाधि स्थल है जहाँ पर महाराणा प्रताप ने अपने छोटे भाई के साथ अपने घोड़े चेतक का अंतिम संस्कार किया था। उसी स्थान पर चेतक का मंदिर भी है, इस स्थान को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 2003 में राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में नामित किया है।

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब कहाँ और कैसे हुई 

महाराणा प्रताप की मृत्यु एक हादसे के दौरान हुई. जब वे धनुष-वाण से युद्ध का अभ्यास कर रहे थे तब धनुष की की डोर खींचते समय उनकी पेट वाले हिस्से में चोट लग गई थी, वह घाव कुछ दिनों में काफी बड़ा हो गया और इसके कारण महाराणा प्रताप लगातार बीमार रहने लगे। घाव ठीक न हो पाने के कारण महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी सन 1597 (माघ शुक्ल एकादशी के दिन विक्रम संवत 1653) को 57 वर्ष की उम्र में चावंड में हुई। चावंड से एक से दो मील की दूरी पर ही एक गांव बांडोली है जहाँ पर नदी के किनारे शूरवीर महाराणा प्रताप का अंतिम संस्कार किया गया था। उदयपुर के सराड़ा तहसील में चावंड के नजदीक इस बांडोली गाँव में महाराणा प्रताप का स्मारक और समाधि स्थल मौजूद है। इस स्मारक को महाराणा प्रताप की छतरी कहा जाता है।

महाराणा प्रताप की राज्य के गौरव और रक्षा के प्रति समर्पण उनकी मृत्यु के समय के एक किस्से से लगाया जा सकता है. 
महाराणा प्रताप ने अपने सामंत और मंत्रियों से कहा था कि – मेरा पुत्र अमरसिंह एक आराम पसंद करने वाला व्यक्ति है और मुझे इस बात की उम्मीद बहुत कम ही है कि वह मेरी मृत्यु के बाद मेरे वंश और मेवाड़ के गौरव की रक्षा कर पायेगा और यदि आप लोग मुझे मेवाड़ के गौरव की रक्षा करने का वचन देंगे तो संभव है कि मेरे प्राण आसानी से निकल जाएँ। सामंतों ने महाराणा प्रताप के इन शब्दों को सुनकर शपथ लेकर कहा कि हम मेवाड़ राज्य और इसके वंश के गौरव की रक्षा अपने प्राण देकर भी करेंगे, इतना सुनते ही महाराणा प्रताप ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। 30 सालों तक कई प्रयास करने के बाद भी अकबर, महाराणा प्रताप को कभी बंदी न बना सका।

  • Q: महाराणा प्रताप को किसने मारा था?

    Ans – जब वे धनुष-वाण से युद्ध का अभ्यास कर रहे थे तब धनुष की की डोर खींचते समय उनकी पेट वाले हिस्से में चोट लग गई थी। और बाद में घाव ठीक न हो पाने के कारण महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी सन 1597 (माघ शुक्ल एकादशी के दिन विक्रम संवत 1653) को 57 वर्ष की उम्र में चावंड में हुई।

  • Q: महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी?

    Ans – 11 पत्नियां।

  • Q: महाराणा प्रताप का घोड़ा कैसे मरा?

    Ans – राणा प्रताप को अपनी पीठ पर लिए हुए 26 फीट लम्बा नाला एक छलांग में पार कर लिया था। इतने लम्बे नाले को लांघते समय चेतक भी घायल हो गया है और उसकी मृत्यु हो जाती है।

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निष्कर्ष –

प्रिय पाठकों महाराणा प्रताप का जीवन परिचय में बताई गई जानकारी Maharana Pratap Singh Ka Jivan Parichay – Maharana Pratap Ki Jivni – Maharana Pratap Ka Itihas – Maharana Pratap Ko Kisne Mara – Maharana Pratap Ki Kitni Patniya Thi – Maharana Pratap Ka Poora Naam आदि, जरुर पसंद आई होगी।

महाराना प्रताप बायोग्राफी से संबंधित आपके मन में कोई सवाल हो तो राजस्थान चित्तौड़गढ़ के महाराणा प्रताप का जीवन परिचय जीवनी लेख सबसे नीचे कमेंट बॉक्स में अपना सवाल भेज सकते हैं। आपके द्वारा महाराणा प्रताप के बारे में पूछे गए सवाल का सही उत्तर दिया जाएगा।

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