प्रस्तावना :-
दहेज प्रथा एक ऐसी कुख्यात सामाजिक प्रथा है। इसमें विवाह के पवित्र बंधन को लेन-देन के आधार पर यह तय किया जाता है। विवाह के समय या विवाह के पूर्व अथवा उपरांत एक पक्ष का दूसरे पक्ष को कुछ देना दहेज कहलाता है। हमारे समाज में प्रायः कन्या पक्ष वर पक्ष को दहेज देता है। दहेज में लोग रुपया – पैसा, जमीन – यजदाद, जेवर,घर आदि का लेन देन करते हैं। कई बार कन्या के माता – पिता अपना सर्वस्व लुटा कर भी दहेज देने को मजबूर हो जाते हैं। पिछले कुछ दशकों में इसके अत्यधिक मामले नजर आए हैं। दहेज प्रथा की जड़ों ने समाज में इस कदर पैर पसार रखे थे की हर व्यक्ति इसे अपने कर्तव्य की तरह लेने लगा। यह प्रथा समाज में काफी समय पहले से प्रचलित है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार दहेज वह संपदा है जो कन्या को स्वीकार करने के संदर्भ में ज़बरन ली जाती है।
दहेज प्रथा की शुरुआत:-
दहेज प्रथा की शुरुआत प्राचीन समय से ही मानी जाती है। पहले के समय में महिलाओं को केवल घर के कामों में लिप्त रखा जाता था। बाहरी समाज से वे पर्दे में रहती थी। बाहरी दुनिया ज्ञान, शिक्षा, दीक्षा छोड़ उन्हें केवल घर संभालने वाली के रूप में देखा जाता था। माना जाता है कि शुरुआत में विदाई के समय कन्या को कुछ उपहार, धन अथवा संपत्ति आदि दी जाती थी जिससे की वह आत्मनिर्भर रहे व आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें। परंतु भोलि भाली, अबला स्त्रियाँ वह धन अपने न रखती व पति या ससुराल वालों को दे देती थी। समय के साथ साथ इस प्रक्रिया ने दहेज प्रथा का रूप ले लिया। लोगों ने अपने लालच व धन संपत्ति के प्रति अपनी लालसा को देखते हुए इसे अपना अधिकार मान लिया व कन्या के बदले दहेज लेना प्रारंभ कर दिया।
दहेज प्रथा क्यों जरूरी थी:-
शुरुआती दौर में दहेज प्रथा कन्या के लिए फायेमंद थी। यह उनको, उनके ससुराल में शक्तिशाली स्थान प्राप्त करने में मदद करती थी। एक नये परिवार में उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करती थी। किसी भी नई जगह पर अपना एक स्थान बनाने में, वहाँ व्यवस्थित होने में व वहाँ के माहौल में ढलने में समय लगता है इसीलिए पहले से माता पिता अपनी पुत्री को विदाई के समय कुछ धन, कुछ संपत्ति, उपहार आदि देते थे जिससे कि वह कुछ हद तक आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सके व नये स्थान पर जाकर लाचार व बेसहारा महसूस न करे।
दहेज प्रथा के कारण:-
समाज में कई अच्छी बुरी प्रथाएँ प्रचलित हैं। हर प्रथा के पीछे एक कारण होता है। दहेज प्रथा के भी कई कारण हैं:-
पुरुष प्रधान समाज :-
हमारा समाज पुरुष प्रधान है। यहाँ पुरुषों को महिलाओं से अधिक महान व शक्तिशाली माना जाता है पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अक्सर हीन भावना से ही देखा जाता है। इसलिए सदैव विवाह के समय वर पक्ष कन्या को स्वीकार करने के बदले दहेज लेता है।
पुराने रिवाज :-
दहेज प्रथा भी उन्हीं पुराने रिवाजों में से एक है जिसका ना कोई सिर है ना पैर। पुराने समय में कन्या को दक्षिणा देने का रिवाज था परंतु समय के साथ यह दहेज प्रथा में बदल गया। इसकी शुरुआत एक उपहार के रूप में हुई थी परंतु आज के समय में यह लोगों के लिए एक बार का निवेश का ज़रिया बन चुका है।
अशिक्षा :-
यह दहेज प्रथा के फैलने का सबसे बड़ा कारण है। अशिक्षा के कारण ही लोग अपनी सुध बुद खोकर हर बात सुनते जाते हैं व अपनी स्वयं की बुद्धि इस्तेमाल करने के विषय में सोचते तक नहीं। समाज में अशिक्षा होने के कारण ही लोग दहेज के वास्तविक स्वरूप को छोड़ कर उसे कुप्रथा बना दिया गया। कन्या पक्ष के लोग भी अशिक्षा के कारण उसे पति का अधिकार समझ कर उसे दे देते हैं।कन्या के अशिक्षित होने के कारण वह अपने निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो पाती है। वह पूर्णतः अपने पिता व अपने पति पर निर्भर हो जाती है।
मजबूरी में किया गया विवाह:-
कई बार पुरुषों के समक्ष यह समस्या आती है की वह जैसी पत्नी अपने लिए चहते थे वह उन्हें नहीं मिलती और यदि उन्हें किसी अन्य से विवाह के लिए जोर दिया जाता है तो वे इसे सौदे के रूप में देखते हैं। इसलिए यह मजबूरी में किया गया विवाह भी दहेज प्रथा का एक अभिन्न कारण है।
दहेज प्रथा के प्रभाव :-
दहेज प्रथा समाज को काफी हद तक प्रभावित करती है। इसका प्रभाव न केवल कन्या के जीवन पर होता है, बल्कि उसके माता पिता के जीवन में भी होता है। समाज एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ सभी व्यक्ति, रीतियाँ- कुरीतियाँ, परस्पर जुड़ी रहती हैं दहेज प्रथा के समाज में निम्न प्रभाव होते हैं :-
- 1) दहेज प्रथा का सबसे पहला प्रभाव कन्या के माता पिता के जीवन पर पड़ता है। एक बाप अपनी पुत्री के विवाह के लिए दिन रात मेहनत कर, एड़ी चोटी का जोर लगाकर दहेज एकत्र करता है और कई बार वर पक्ष के लोग इसकी भी निंदा करते हैं या उनके प्रयासों को कम बताकर बारात वापसी की बातें करते हैं। उन्हें अधिक दहेज देने को मजबूर करते हैं। कई बार लोग पुत्री के विवाह में अपनी ज़मीन, जेवर, घर आदि तक बेच देते हैं या गिरवी रखकर दहेज की कीमत अदा करते हैं।
- 2) कन्या के जीवन पर भी इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि कोई वधु अपने साथ दहेज लेकर नही आई या कम दहेज लेकर आती है तो उसके साथ जानवरो जैसा व्यवहार किया जाता है। कभी कभी उसे उसके माता पिता के घर वापस भेज दिया जाता है। एक कन्या के जीवन में इसका प्रभाव मृत्यु भी हो सकता है। कई बार महिलाओं को दहेज न मिलने के कारण ससुराल वालों द्वारा जला भी दिया जाता है।
- 3) कहते हैं कि लालच बुरी बला है। कई बार लोग दहेज के लालचमें इस कदर डूब जाते हैं कि वे सही गलत का बोध खो बैठते हैं। कई बार ऐसी भी घटनाएं सामने आई हैं जिसमे एक लड़के के घरवाले दहेज के लालच में अधिक विवाह कर देते हैं व एक साथ कई लड़कीओं की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं।
दहेज प्रथा एक अभिशाप :-
दहेज प्रथा वास्तव में एक अभिशाप है। समाज में समय समय पर ऐसे लोग जन्म लेते रहते हैं जो इस कथन की पुष्टि करते हैं :-
- 1) बिहार के पत्रकार नगर में चारुलता नामक एक युवती रहती थी। वह बैंक में प्रविजनरी अफसर थी। 20 वर्ष की आयु में चारुलता का विवाह हुआ उसने अपनी सारी कमाई ससुराल वालों को सौंपने का फैसला किया था। इसके अतिरिक्त भी उसके ससुराल वालों ने 15 लाख रुपए की मांग की थी। विवाह मे 20 लाख रुपए चारुलता के परिवार वालों द्वारा खर्च होने के बाद जब कन्या पक्ष समय पर 15 लाख रुपए देने में सक्षम नहीं रहा तो चारुलता के जीवन को नर्क बना दिया गया। और विवाह के ढाई साल बाद उसकी हत्या कर दी गयी। हत्या के बाद उसके ससुराल वाले उसके बच्चेे को लेकर फरार हो गए। पकड़े जाने पर उन्होंने बताया कि हत्या का कारण दहेज के लिए तय किये गए पैसे न मिलना था।
- 2) पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके में दहेज से इंकार करने पर महिला के पति व ससुराल वालों ने महिला को आग के हवाले कर दिया।
- 3) फरवरी 2021 में अहमदाबाद निवासी हो आयशा बानू नामक 24 वर्षीय एक महिला का कैसे दर्ज किया गया था। इसमें महिला ने दहेज के कारण आत्महत्या की थी। आत्महत्या के पहले आयशा ने एक वीडियो रिकॉर्ड करी थी। इसमें उन्होंने बताया कि किस तरह दहेज के लालच के चलते उनको यातनाएं झेलनी पड़ी।
- 4) मार्च 2021 में कोलकाता निवासी राशिका अग्रवाल नामक 25 वर्षीय महिला की मृत्यु ही थी। उनके परिवार वालों ने बताया की उनसे 7 करोड़ रुपए की मांग की गयी थी। परंतु वे लोग इसे देने में सक्षम नहीं थे। इसी के चलते राशिका की हत्या कर दी गई।
- 5) 2020 में बंगलोर निवासी एक 40 वर्षीय व्यक्ति को अहमदाबाद में गिरफ्तार किया गया था। वह अपनी पत्नी को हमेशा दहेज के लिए प्रताड़ित करता था। जब पत्नी ने दहेज देने से इंकार किया तो उसने अपनी 14 वर्षीय बेटी का यौन शोषण कर डाला। बताया जाता है कि उस व्यक्ति को ससुराल वालों से 1 किलो सोना दहेज में मिला था। जिसके बाद वह और रुपयों की मांग करने लगा और सभी रास्ते बंद होते नज़र आने पर उसने अपनी पत्नी को आग के हवाले कर दिया।
दहेज प्रथा के उन्मूलन हेतु अधिनियम :-
दहेज जैसे कुप्रथाएँ हमारे समाज को खोखला कर देती हैं। इस पर रोकथाम करने के लिए भारतीय संविधान में कुछ प्रावधान दिये गए हैं। सर्वप्रथम दहेज के कारण एफआईआर दर्ज होने पर 498 A सेक्शन लगता है। इसके अंतर्गत पीड़िता के पति व अन्य परिवार जनों पर कार्यवाही की जाती है। इस प्रकार के मामले में 3 साल की सजा सुनाई जा सकती है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए सन् 1961 में यह दहेज निषेध अधिनियम (dowry prohibition act) शुरू हुआ था। इस अधिनियम में 2 सेक्शन आते हैं। एक सेक्शन 3 और दूसरा सेक्शन 4। सेक्शन 3 कहता है कि- दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं, पकड़े जाने पर 5 साल तक की सजा व 15 हज़ार तक का जुर्माना हो सकता है। वहीं सेक्शन 4 के अंतर्गत दहेज की मांग करने पर 6 माह से 2 साल तक की सजा हो सकती है।
निष्कर्ष :-
भारतीया समाज सदिओं से पुरुष प्रधान रहा है। परंतु संविधान ने इसमें काफी बदलाव किये हैं। पिछले कुछ दशकों में स्त्री, पुरुष के बीच व अन्य लैंगिक अंतर भी मिटे हैं। संविधान ने जीवन के लगभग हर पहलू की और प्रकाश डाला है। दहेज प्रथा भी इनमें से एक है। आज के समय में कई जगहों पर शिक्षा व टेक्नोलॉजी के कारण इस कुप्रथा से निजात मिली है। परंतु कई स्थानों पर सुधार की आवश्यकता है। संविधान में सभी अधिकारों, समानताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है, जरूरत है तो समाज के जागरूक होने की, यदि इन सदिओं से चली आ रही कुप्रथाओं को समाज के लोग अपनाने से इंकार कर दें तो इनसे छुटकारा पाना आसान हो जायेगा।
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