भारत में प्रजातंत्र पर निबंध Essay on Democracy in Hindi (1000 Words) में आज आपकों Prajatantra Par Nibandh की जानकारी में प्रजातंत्र क्या है और प्रजातंत्र की परिभाषा या अर्थ के बारे में निबंध के द्वारा प्रजातंत्र के प्रकार, रूप, दोष, गुण एवं प्रजातंत्र से लाभ और हानियां के बारे मे बताया गया है।
प्रजातंत्र पर निबंध हिंदी में खासकर स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए तैयार किया गया है। प्रजातंत्र यानी लोकतंत्र पर निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए 500 शब्द से 1000 शब्दों के बीच तैयार किया गया है। निबंध से प्रजातंत्र जैसे राजनीति ज्ञान आपका बड़े ताकि आप भी प्रजातंत्र पर अच्छे से अच्छा निबन्ध लिखकर अच्छे अंको से परीक्षा में उत्तीर्ण हो।
भारत में प्रजातंत्र पर निबंध Essay on Democracy in Hindi
प्रजातन्त्र शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया एक अंग्रेजी शब्द ‘Dermocracy’ का हिन्दी रूपान्तर है, जिसकी परिभाषा होती है प्रजा मतलब जनता द्वारा परिचालित शासन व्यवस्था। वैसे तो प्रजातन्त्र की कई परिभाषाएँ अब तक दी गई हैं, किन्तु उनमें अब्राहम लिंकन द्वारा दी गई परिभाषा सर्वाधिक मान्य एवं प्रचलित है। अब्राहन लिंकन के अनुसार प्रजातंत्र का मतलब प्रजातन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा चुना गया शासन है। इस तरह प्रजातन्त्र में जनता में ही प्रशासन की सम्पूर्ण शक्ति विद्यमान होती है उसकी सहमति से ही शासन होता है एवं उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य होता है। हालॉकि सभ्यता के प्रारंभ में शासन व्यवस्था के रूप में राजतन्त्र की ही प्रमुखता थी। शक्तिशाली व्यक्ति अपने प्रभाव से राज्य पर अधिकार कर लेता था। इस शासन व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह थी कि प्रायः इसमें आम जनता को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होता था। मानव-सभ्यता में जैसे-जैसे प्रगति हुई, लोग इस शासन व्यवस्था के विकल्प ढूँढने लगे। जिसके चलते शासन व्यवस्था एक व्यक्ति के हाथ में न रहकर सम्पूर्ण जनता के हाथ में रहे, ऐसी व्यवस्था की गई। इस व्यवस्था को ही ‘प्रजातन्त्र’ नाम दिया गया।
वैसे तो प्रजातन्त्र की आधुनिक स्थति का उदय होने में बहुत साल लग गए। लेकिन आज प्रजातन्त्र एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में उभर चुका है और भारत विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश के रूप में जाना जाता है। यदि हम भारतीय इतिहास पर नजर डालें, तो भारत में तीसरी शताब्दी में भारत के सोलह जनपदों में वैशाली जनपद भी एक था, जहाँ गणतान्त्रिक शासन व्यवस्था विद्यमान थी, किन्तु आधुनिक प्रजातन्त्र की उत्पत्ति का स्थल यूरोप को ही माना जा सकता है, क्योंकि इसकी नींव मध्यकाल के बारहवीं एवं तेरहवीं शताब्दी के बीच विभिन्न यूरोपीय देशों में राजतन्त्र के विरोध के साथ पड़ी। यूरोप में पुनर्जागरण एवं धर्म सुधार आन्दोलनों ने प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्तों के विकास में उपयोगी भूमिका निभाई। इन आन्दोलनों ने व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर बल दिया तथा राजा की शक्ति को सीमित करने के प्रयत्न किए।
प्रजातन्त्र प्रणाली में चार क्रान्तियों का योगदान
प्रजातन्त्र को वर्तमान स्वरूप धारण करने में चार क्रान्तियों का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है। ये क्रान्तियाँ हैं -1688 की इंग्लैण्ड की रक्तहीन क्रान्ति (गौरवपूर्ण क्रान्ति), 1776 की अमेरिकी क्रान्ति, 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति एवं 19वीं सदी की औद्योगिक क्रान्ति। इंग्लैण्ड की रक्तहीन क्रान्ति ने यह निश्चित कर दिया कि प्रशासकीय नीति और राज्य के क्रियाकलापों की पृष्ठ भूभि में संसद की स्वीकृति होनी चाहिए। अमेरिकी क्रान्ति ने भी लोक प्रभुत्व के सिद्धान्त का पोषण किया। फ्रांसीसी क्रान्ति ने स्वतन्त्रता, समानता एवं भाई चारे के सिद्धान्त को शक्ति दी एवं औद्योगिक क्रान्ति ने प्रजातन्त्र के सिद्धान्त को आर्थिक क्षेत्र में प्रयुक्त करने की प्रेरणा दी।
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र एवं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र
सामान्यतः प्रजातंत्र शासन व्यवस्था दो प्रकार की मानी जाती है -प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र एवं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र वह शासन व्यवस्था जिसमें देश के समस्त नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राज्य कार्य में भाग लेते हैं, उसे प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहा जाता है। इस प्रकार का प्रजातन्र छोटे आकार के देश में ही सम्भव है, जहाँ समस्त निर्वाचक एक स्थान पर एकत्र हो सकें। अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।
प्रजातंत्र के संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक
व्यवस्था के दृष्टिकोण से प्रजातन्त्र के दो रूप होते हैं – संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक। संसदात्मक व्यवस्था में जनता एक निश्चित अवधि के लिए संसद सदस्यो का निर्वाचन करती है। संसद द्वारा मन्त्रिमण्डल का निर्माण होता है। मंत्रिमंडल संसद के प्रति एवं संसद सदस्य जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संसदात्मक प्रजातन्त्र में राष्ट्रपति यद्यपि सर्वोच्च पद पर आसीन होता है, किन्तु वह नाममात्र का शासक होता है। भारत में शासन प्रणाली की संसदात्मक व्यवस्था है। अध्यक्षात्मक प्रजातन्त्र प्रणाली में राष्ट्रपति सर्वाधिक शक्तिशाली होता है। अमेरिका जैसे देशों में ऐसी ही प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था है। आज संसार के अधिकतर देशों में प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था है, इसलिए वर्तमान युग को ‘प्रजातन्त्र का युग’ कहा जाता है।
प्रजातंत्र के प्रमुख अंग
प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में सरकार के तीन अंग होते हैं -विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका। विधायिका का कार्य कानून का निर्माण करना, कार्यपालिका का कार्य उन कानूनों का सही ढंग से क्रियान्वयन करना एवं न्यायपालिका का कार्य कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों को दण्डित करना है। इस प्रकार सरकार के तीनों अंग प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था को सशक्त बनाते हैं।
प्रजातान्त्रक और शासन
प्रजातान्त्रक शासन व्यवस्था के अनेक लाभ हैं। प्रजातान्त्रिक शासन में राज्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है। राज्य व्यक्ति के विकास के लिए पूर्ण अवसर प्रदान कराता है। जिस तरह व्यक्ति और समाज को अलग करके दोनों के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती ठीक उसी प्रकार प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में प्रजा और सरकार को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता।
प्रजातंत्र के लाभ और हानियां
प्रजातन्त्र के कई लाभ हैं, तो कई हानियाँ भी सम्भव हैं। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक हे कि जनता शिक्षित हो एवं अपना हित समझती हो। जनता के अशिक्षित होने की स्थिति में स्वार्थी लोग धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र इत्यादि के आधार पर लोगों को बरगलाकर सत्ता में आ सकते है। कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि धनी एवं भ्रष्टाचारी लोग गरीब जनता को धन का प्रलोभन देकर या अपने प्रभाव से सत्ता पाने में कामयाब रहते हैं। प्रौद्योगिकी में विकास के बाद इलेक्टॉनिक उपकरणों के आम-चुनाव में शामिल करने से यद्यापे चुनाव में होने वाले भ्रष्टाचार में कमी हुई है, किन्त यदि जनता समझदार न हो तो अभी भी भ्रष्ट उम्मीदवार को निर्वाचित होने से नहीं रोका जा सकता। प्रजातन्त्र के बारे में मुहम्मद इकबाल ने लिखा है-
“जम्हूरियत वह तर्ज-ए-हकूमत है कि जिसमें,बन्दों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते”
प्रजातन्त्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें बहमत के आधार पर जन-प्रतिनिधि का चुनाव किया जाता है न कि उम्मीदवार की योग्यता के आधार पर। इस तरह यदि जनता शिक्षित एवं समझदार न हो तो इस बात की सम्भावना है कि वह ऐसे आदमी को बहुमत दे जो योग्य न हो। प्रजातन्त्र की एक और खामी यह है कि जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से शासन नहीं करती, बल्कि शासन के लिए प्रतिनिधि चुनती है। चुने गए प्रतिनिधि के जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में, देश एवं समाज का कभी भला नहीं हो सकता। इसलिए राजनीतिशास्त्र के विद्वान् प्लेटो ने प्रजातन्त्र को ‘मूखों का शासन’ कहा है। प्रजातंत्र का एक और दोष यह है कि न्यायपालिका सरकार का मुख्य अंग होने के बावजूद भी समय पर न्याय नहीं कर पाती, क्योंकि न्यायपालिका पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं होता।
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निष्कर्ष –
आखिर में यही कहा जा सकता है कि यदि जनता अशिक्षित हो या अधिक समझदार न हो तब प्रजातन्त्र की खामियाँ अधिक सामने आ सकती हैं, किन्तु यदि जनता शिक्षित एवं समझदार हो तो इसे सर्वोत्तम शासन व्यवस्था कहा जा सकता है, क्योकि इस प्रणाली में ही जनता को अपनी बात कहने का पूर्ण अधिकार होता है।
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