नमस्कार दोस्तों, HindiNote- Hindi Me Help के लेख में महावीर स्वामी पर निबंध Essay on Mahavir Swami in Hindi की जानकारी बताई गई है।
हिंदी निबंध में भगवान महावीर स्वामी का जीवन परिचय क्या है?, महावीर स्वामी के उपदेश क्या है?, जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत क्या है?, की पूरी जानकारी दी गई है! चलिए आज का हिंदी निबंध लेखन शुरू करते हैं।
महावीर स्वामी पर निबंध
प्रस्तावना-
हमारे भारत देश में समय – समय पर परिस्थितियों के अनुसार संतो- महापुरुषों ने जन्म लिया है और देश को दुखद परिस्थितियों से मुक्त करके पूरे विश्व को सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की धरती गौरवशाली और महिमावान हो उठी है। पूरे विश्व में भारत को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। इन्हीं महापुरुषों में से एक थे भगवान महावीर स्वामी।
अधर्म का नाश करने व धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान अक्सर रूप रचते है। धर्म की संस्थापना करने वाले भगवद्स्वरूप महावीर स्वामी का जन्म साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, दुर्षित कर्म करने वालो का नाश करने के लिए तथा धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए हुआ था।
भगवान महावीर स्वामी वह महान् आत्मा है जिन्होंने मानव के कल्याण के साथ ही साथ पशु पंक्षियों के कल्याण के लिए अपने राज पाट और वैभव को छोड़ कर तप, त्याग व सन्यास के रास्ते को अपना लिया था।
महावीर स्वामी का जन्म
महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बिहार राज्य के वैशाली के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश में चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। जैन धर्म के समर्थको व अनुयायियों के द्वारा भगवान महावीर स्वामी जी के जन्मदिन को भगवान महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था जो वैशाली के क्षत्रिय शासक थे वही इनकी माता का नाम त्रिशला था जो धर्म – परायण भारतीयता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थी। महावीर स्वामी जी के एक बड़े भाई और एक बहन भी थी। इनके भाई का नाम नन्दिवर्धन तथा बहन का नाम सुदर्शना था।
बाल अवस्था में महावीर स्वामी का नाम वर्धमान था। महावीर स्वामी के जन्म के बाद ही राजा सिद्धार्थ के धन धान्य व वैभव में वृद्धि हुई थी और इसी कारण से इनका नाम वर्धमान रखा गया था। किशोरावस्था में एक भयंकर नाग व हाथी को वश में कर लेने के कारण इन्हें महावीर के नाम से पुकारा जाने लगा। इसके अलावा महावीर स्वामी जी को श्रमण, वीर, अतिवीर तथा सन्मति जैसे नामों से भी जाना जाता है।
महावीर स्वामी का जीवन परिचय
महावीर स्वामी को पारिवारिक सुख की कोई कमी न थी लेकिन ये परिवारिक सुख तो महावीर को आनंदमय और सुखमय फूल न होकर दुःख एवं कांटों की भांति चुभने लगे थे। महावीर सदा संसार की निरर्थकता पर विचार करते रहते थे। महावीर स्वामी बहुत ही दयालु और कोमल स्वभाव के थे। इसलिए वे प्राणियों के दुःख को देखकर संसार से विरक्त रहने लगे। युवावस्था में इनका विवाह एक सुंदरी राजकुमारी से हो गया। फिर भी महावीर अपनी पत्नी के प्रेम आकर्षण में बंधे नहीं अपितु उनका मन संसार से और अधिक उचटता चला गया। 28 वर्ष की आयु में महावीर के पिताजी का निधन हो गया था। इससे उनका मन और अधिक खिन्न और वैरागी हो गया।
महावीर इसी तरह संसार से विराग लेने के लिए चल पड़े थे लेकिन उनके बड़े भाई नंदिवर्धन के आग्रह पर उन्होंने 2 वर्ष और गृहस्थ जीवन के जैसे – तैसे काट दिए। लगभग 30 वर्ष की आयु में महावीर ने सन्यास पथ को अपना लिया था। महावीर ने गुरूवर पार्श्वनाथ का अनुयायी बनकर लगभग बारह वर्षों तक लगातार कठोर साधना की थी। इस विकट तपस्या के फलस्वरूप उन्हें सच्चा केवलज्ञान प्राप्त हुआ। महावीर स्वामी जी ने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी जिसके कारण इन्हें जितेन्द्रिय भी कहा जाता है। इसके बाद महावीर ने जंगलों की साधना को छोड़कर शहरों में जनमानस को विभिन्न प्रकार के ज्ञान व उपदेश देने लगे।
उपदेश
महावीर स्वामी ने लगभग 40 वर्षों तक बिहार के उत्तर – दक्षिण स्थानों में अपने उपदेश दिए। इस समय उनके अनेक शिष्य बन गए थे। महावीर स्वामी जी के मुख्य शिष्यों की संख्या 11 थी। इनके प्रथम मुख्य शिष्य इन्द्रभूति थे। महावीर स्वामी ने यह उपदेश दिया कि जाति – पांति से न कोई व्यक्ति श्रेष्ठ व महान् बनाता है और न उसका कोई स्थायी जीवन मूल्य होता है। इसलिए मानव के प्रति प्रेम और सद्भावना की भावनाओं की स्थापना का ही उद्देश्य मनुष्य को अपने जीवन उद्देश्य के रूप में समझना चाहिए। सबकी आत्मा को अपनी अपनी आत्मा के ही समान समझना चाहिए ; यही मनुष्यता है। अगर महावीर स्वामी जी के उपदेशों के सार के बारे में बात की जाए तो त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही इनके उपदेशों का सार था।
जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत
भगवान महावीर स्वामी जी को भारत के सबसे प्राचीनतम जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है क्योंकि इन्ही के समय मे जैन धर्म का सबसे अधिक प्रचार प्रसार हुआ था। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए है जिनमे महावीर स्वामी जी अंतिम तीर्थंकर थे। जैन धर्म के पांच मुख्य सिद्धांत है –
- सत्य
- अहिंसा
- चोरी न करना
- जीवन में शुद्ध आचरण
- आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना
जैन धर्म के इन पांच सिद्धांतो पर चलकर ही मनुष्य मोक्ष या निर्वाण प्राप्त कर सकता है। हमें आत्म कल्याण के लिए इन सिद्धान्तों पर चलना चाहिए। महावीर स्वामी ने सभी मनुष्यों को इस पथ पर चलने को कहा है।
महावीर स्वामी का निधन
महावीर स्वामी की मृत्यु 92 वर्ष की आयु में कार्तिक मास की आमावस्या को पापापुरी नामक स्थान में बिहार राज्य में हुई। महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर के रूप में आज भी सुश्रध्दा और ससम्मान पूज्य और आराध्य हैं।
महावीर स्वामी के मोक्ष प्राप्ति वाले दिन, जैन मंदिरों में दीप प्रज्वलित करके, हिन्दू धर्म मे मनाये जाने वाले दीपावली के त्यौहार की तरह भव्यरूप में मनाया जाता है।
उपसंहार
महावीर स्वामी के आदर्श और सिद्धांत मोक्ष प्राप्ति तथा आत्म कल्याण के द्वार है इसलिए भारत देश के प्रत्येक व्यक्ति को महावीर स्वामी के आदर्शों व सिद्धांतो पर चलना चाहिए। अधर्म को छोड़कर धर्म का पालन करना चाहिए , हिंसा का त्याग कर अहिंसक बनना चाहिए , घृणा के वजह प्रेम करना चाहिए।
आज के संसार में जहां भ्रष्टाचार, हिंसा, घृणा, वैर, द्वेष बढ़ रहे हैं, वही ऐसे समय में मनुष्य सुख और शांति महावीर स्वामी के उपदेशों पर चलकर ही प्राप्त कर सकता है।
FAQ,s
महावीर स्वामी कौन थे?
भगवान महावीर स्वामी वह महान् आत्मा है जिन्होंने मानव के कल्याण के साथ ही साथ पशु पंक्षियों के कल्याण के लिए अपने राज पाट और वैभव को छोड़ कर तप, त्याग व सन्यास के रास्ते को अपना लिया था।
महावीर स्वामी को ज्ञान कहाँ प्राप्त हुआ ?
महावीर स्वामी ने गुरूवर पार्श्वनाथ का अनुयायी बनकर लगभग बारह वर्षों तक जंगलों में लगातार कठोर साधना की थी। इस विकट तपस्या के फलस्वरूप उन्हें सच्चा केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर स्वामी को ज्ञान कहाँ प्राप्त हुआ ?
महावीर स्वामी ने गुरूवर पार्श्वनाथ का अनुयायी बनकर लगभग बारह वर्षों तक जंगलों में लगातार कठोर साधना की थी। इस विकट तपस्या के फलस्वरूप उन्हें सच्चा केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
महावीर स्वामी की कितनी मौसी थी ?
महावीर स्वामी की छह (6) मौसी थी।
महावीर स्वामी के पिता का नाम क्या था?
सिद्धार्थ
महावीर स्वामी की माता का नाम क्या है?
त्रिशला
महावीर स्वामी के कितने भाई थे?
महावीर स्वामी के 1 भाई थे जिसका नाम नन्दिवर्धन था।
महावीर स्वामी की मुख्य शिक्षाएं क्या थी?
महावीर जी कहते है कि जाति – पांति से न कोई व्यक्ति श्रेष्ठ व महान् बनाता है और न उसका कोई स्थायी जीवन मूल्य होता है। इसलिए मानव के प्रति प्रेम और सद्भावना की भावनाओं की स्थापना का ही उद्देश्य मनुष्य को अपने जीवनोद्देश्य के रूप में समझना चाहिए। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार आदि महावीर के उपदेशों के सार है।
महावीर स्वामी का जन्म कब हुआ?
महावीर स्वामी का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बिहार राज्य के वैशाली के कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश में चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था।
महावीर स्वामी का जन्म किस वंश में हुआ?
इक्ष्वाकु वंश
महावीर स्वामी का जन्म स्थान क्या है?
कुण्डग्राम ,वैशाली (बिहार)
महावीर स्वामी जैन धर्म के कौन से तीर्थंकर थे?
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें व अंतिम तीर्थंकर थे।
जैन धर्म का अंतिम तीर्थंकर कौन था?
भगवान महावीर स्वामी
महावीर की मृत्यु कहाँ हुई?
पापापुरी नामक स्थान
महावीर स्वामी का प्रथम शिष्य कौन था?
इन्द्रभूति
जैन तीर्थंकरों के कर्म में अंतिम कौन थे?
महावीर स्वामी
जैन धर्म में कितने तीर्थंकर है?
24
महावीर स्वामी ने कितने वर्षों तक वन में कठोर साधना की?
12 वर्षो तक
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आज आप ने क्या सीखा-
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