आज के लेख में भारत की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां व मुद्दें की परिभाषा और निबंध (Essay on Challenges and Issues of Internal Security of India) | Bharat Ki Aantrik Suraksha Ki Chunautiya, Mudde Ki Paribhasha Aur Nibandh लिखकर आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां पर जानकारी दी गई है।
आज आपको भारत की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां पर निबंध या आंतरिक सुरक्षा की परिभाषा में क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, भाषावाद और अलगाववाद किस प्रकार देश की आंतरिक सुरक्षा में चुनौती बना हुआ है। आंतरिक सुरक्षा को चुनौती या आन्तरिक सुरक्षा या देश की प्रगति में सुरक्षा के मुद्दे क्या क्या है इन सब के बारे में जानेंगे। आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों से कैसे निपटा जा सकता है इनके बारे में भी आपको इस लेख में विस्तार पूर्वक बताया जाएगा।
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भारत की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां
Bharat Ki Aantrik Suraksha Ki Chunautiya Par Nibandh : कोई भी देश तब ही प्रगति की दिशा में आगे बढ़ सकता है जब उस देश के नागरिक अपने देश में सुरक्षित हो। असुरक्षा की भावना ना केवल नागरिकों का जीना दूभर कर देती है बल्कि इससे देश की शांति एवं सुव्यवस्था के साथ-साथ इसकी प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विश्व के सभी देशों में भारत आज एक ऐसा देश बन चुका है जो तेजी से अपने देश की प्रगति कर रहा है किंतु इसकी आंतरिक सुरक्षा के समक्ष कुछ ऐसी चुनौतियां है जो इसकी शांति एवं सुव्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, भाषावाद, अलगाववाद ऐसे भारत की आंतरिक सुरक्षा के कुछ खतरनाक चुनौतियां या मुद्दे हैं।
भारत की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां क्या क्या है, एक एक कर सभी आंतरिक मुद्दें क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, भाषावाद, अलगाववाद की परिभाषा जानते है।
क्षेत्रवाद की समस्या (Problem of Regionalism)
Chhetravad Ki Chunautiya : क्षेत्र के निवासियों द्वारा अपने क्षेत्र के प्रति निष्ठा रखना, उसे अन्यों से विशिष्ट मानना और क्षेत्रों के हितों के प्रति जागरूक रहना क्षेत्रवाद है, लेकिन इसके संकीर्ण रूप ले लेने पर क्षेत्र बनाम राष्ट्र की भावना जाती है और तब सिर्फ क्षेत्र विशेष की सुविधाओं की इच्छा के कारण यह नकारात्मक अवधारणा बन जाती है। इस तरह क्षेत्रवाद से तात्पर्य किसी क्षेत्र के लोगों की भावना एवं प्रयत्नों से है, जिनके द्वारा वे अपने क्षेत्र विशेष की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, आदि शक्तियों में वृद्धि करना चाहते हैं। क्षेत्रवाद हमारी इस राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के पनप्ने के कई कारण है। भौगोलिक विभिन्नता, आर्थिक असंतुलन, भाषागत विभिन्नता व राज्यों के आकार में असमानता के कारण क्षेत्रवाद की समस्या अधिक तीव्र हुई है एवं प्रथकतावाद को प्रोत्साहन मिला है। विकास में असंतुलन के कारण भी राज्य में मतभेद उभरते हैं। इन सबके अतिरिक्त भारत में जातिवाद के कारण भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिला है तथा हरियाणा और पंजाब के उदाहरण हैं।
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संप्रदायिकता के मु्द्दे (issues of communalism)
Sampradayikta Ki Chunautiya : इतिहास साक्षी है कि अनेक धर्मो, जातियों एवं भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदा एकता के सूत्र में बंधा रहा है। यहां अनेक जातियों का आगमन हुआ और उनकी परंपराएं, विचारधाराएं और संस्कृति इस देश के साथ एक रूप हो गई। इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बांटकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहते हैं। इस तरह धार्मिक कट्टरता के नाम पर कुछ स्वार्थी लोग दूसरे लोगों के दिलों में सांप्रदायिकता की भावना भड़काकर देश को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
आतंकवाद की चुनौती (The challenge of Terrorism)
Aatankvad Ki Samasya : वैसे तो आज लगभग पूरा विश्व ही किसी न किसी रूप में आतंकवाद की चपेट में है, किंतु भारत दुनिया भर में आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त देशों में से एक है। पिछले कुछ दशकों से भारत में आतंकी घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त राज्य जम्मू-कश्मीर है। यूं तो जम्मू कश्मीर में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही आतंकवाद प्रारंभ हो गया था, जिसको पाकिस्तान से हमेशा प्रश्रय मिलता रहा है, किंतु 1986 के बाद इसने गंभीर रूप धारण कर लिया और अब भारत के लिए ‘कश्मीर समस्या’ सर्वाधिक जवलंत समस्या का रूप धारण कर चुका है। इस आतंकवाद के केंद्र में न केवल अलगाववादी संगठन, बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथी एवं पाकिस्तान समर्थित संगठन भी शामिल है।
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नक्सलवाद के मुद्दे (Naxalism issues)
Naksalvad Ke Mudde : वैसे तो भारत में नक्सलवाद की शुरुआत स्वाधीनता संग्राम से पहले ही हो चुकी थी, जो साम्यवादी या अन्य क्रांतिकारी विचारधारा के रूप में यहां अपनी जड़े जमा चुका था, किंतु इसे यह नाम पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी नामक स्थान से मिला। मार्च 1967 में इस गांव के एक आदिवासी किसान बियल किसन के खेत पर स्थानीय भू – स्वामियों ने अधिकार कर लिया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप उस क्षेत्र के आदिवासियों ने भू स्वामियों के विरुद्ध सशस्त्र विरोध कर दिया। इस विद्रोह को साम्यवादी क्रांतिकारियों का भारी समर्थन मिला। धीरे-धीरे इस तरह के विद्रोह भारत में अन्य जगहों पर भी होने लगे और उन्हें नक्सलवाड़ी में हुए ऐसे प्रथम विद्रोह के नाम पर नक्सलवादी विद्रोह का नाम दिया गया। इस तरह विद्रोह के एक नए रूप नक्सलवाद का प्रादुर्भाव हुआ। प्रारंभ में यह विद्रोह पश्चिम बंगाल तक ही सीमित था, किंतु धीरे-धीरे यह उड़ीसा, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में भी फैल गया। पहले इसका उद्देश्य भी अपने वास्तविक हक की लड़ाई था, किंतु अब यह बहुत ही हिंसक विद्रोह के रूप में देश के लिए एक गंभीर समस्या एवं चुनौती बन चुका है।
भाषावाद (Linguism)
Bhashavad : भारत बहुभाषी देश है। यहां अनेक भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं। भाषाओं की बहुलता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के संविधान में ही 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। हिंदी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है, इसलिए इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। इसके बाद बांग्ला भारत में दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसी तरह तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी इत्यादि अन्य भाषाएं बोलने वालों की संख्या भी काफी है। भाषाओं की बहुलता के कारण भाषायी वर्चस्व की राजनीति ने भाषावाद का रूप धारण कर लिया है। इसने अब तक कहीं संघर्षों को जन्म दिया है। विशेषकर दक्षिण भारत के लोग हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का शुरू से विरोध करते रहे हैं एवं विरोध प्रदर्शन के लिए उन्होंने अब तक कहीं आंदोलन भी किए हैं। इस तरह भाषावाद भी हमारी आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरे का रूप लेता जा रहा है।
अलगाववाद (Separatism)
Algavwad : भारत की संघात्मक व्यवस्था में प्रशासनिक एकरूपता पर बल दिया गया है। किंतु, दुर्भाग्य से देश के कई भागों से नए राज्यों की मांग उठती रही है और नए राज्य न सिर्फ बनते रहे बल्कि एक के बाद एक नए राज्यों की मांग जोर पकड़ती जा रही है। 1953 में आंध्र प्रदेश का गठन भाषा के आधार पर किया गया था। उसके पास सन् 2000 आते-आते भारत के कुल राज्यों की संख्या 28 हो गई। ध्यातव्य है कि अधिक अधिकार एवं सुविधाओं के नाम पर अब तक कई राज्यों का विभाजन या पुनर्गठन हो चुका है। जैसे उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड, बिहार से झारखंड, मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ इत्यादि। इन सबके अतिरिक्त अब आंध्र प्रदेश से तेलंगाना, पश्चिम बंगाल से गोरखालैंड,बिहार से मिथिलांचल, असोम से बोडोलैंड, उत्तर प्रदेश से पूर्वांचल इत्यादि क्षेत्रों को भी राज्यों के रूप में अलग करने की मांग जोर पकड़ते जा रही है।
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आंतरिक सुरक्षा के उपाय (Internal Security Measures)
Aantrik Suraksha Ke Upay : भारत सरकार का गृह मंत्रालय आंतरिक सुरक्षा से संबंधित सभी मामले देखता है। इसके लिए इसके संघटक के रूप में आंतरिक सुरक्षा विभाग का गठन किया गया है जो पुलिस, कानून और व्यवस्था तथा शरणार्थियों के पुनर्वास संबंधित कार्य देखता है। जनवरी 2009 एवं फरवरी 2010 में आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें आंतरिक सुरक्षा की स्थिति एवं इसके खतरों से निपटने के लिए आवश्यक कार्रवाई पर विस्तार से चर्चा हुई। इसके बाद देश के सुरक्षा तन्त्र को सुदृढ़ बनने के लिए सरकार द्वारा कई उपाय किए गए। इनमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कार्यात्मक बनाना, चार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड हबो की स्थापना करना जिससे कि किसी संभावित आतंकी हमले से तीव्र एवं प्रभावी ढंग से निपटना सुनिश्चित हो सके, इंटेलिजेंस ब्यूरो की क्षमता को बढ़ाना जिससे यह 24 घंटे कार्य करने योग्य हो सके, केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों की क्षमता बढ़ाना तथा तटीय सुरक्षा को मजबूत करना शामिल है।
राष्ट्र की आंतरिक शांति तथा बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए आंतरिक सुरक्षा की इन चुनौतियों का शीघ्र समाधान परम आवश्यक है। इसके लिए केवल सरकारी प्रयासों से कुछ नहीं हो सकता, प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़कर इसे रोकने का प्रयास करना होगा। यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतंत्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे। यदि आतंकवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, अलगाववाद, सांप्रदायिकता एवं नक्सलवाद जैसी विघटनकारी और विध्वंसकारी प्रवृत्तियों को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं किया गया, तो भारत की एकता और अखंडता पर हमेशा खतरा मंडराता रहेगा। जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय घटक आपस में संघर्ष करते हैं, तो उसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है।
अतः भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि इसकी एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए हर बलिदान और त्याग करने को तत्पर रहें। हम अपनी चौकन्नी दृष्टि से ऐसे तत्वों को पनपने से रोक सकते हैं। देश के बुद्धिजीवियों और प्रबुद्ध नागरिकों का कर्तव्य है कि वे देश की जनता को इस दिशा में जागरूक का समूचे राष्ट्र की एकता कायम रखने में अपना अमूल्य योगदान दें। चूंकि सशक्त और समृद्ध राष्ट्र ही राष्ट्रीय एकता की आधारशिला होती है इसलिए देश की एकता और अखंडता की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।
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निष्कर्ष –
HindiNote – Tech in Hindi ब्लॉग के इस लेख में हमने Aantrik Suraksha Par Nibandh Aur Bharat Ki Aantrik Suraksha Ki Chunautiya Aur Mudde के बारे में विस्तार से बताया है।
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