ज्वालामुखी की परिभाषा :- ज्वालामुखी पृथ्वी पर घटित होने वाली एक आकस्मिक घटना है। जिससे भूपटल पर अचानक विस्फोट होता है। जिसके माध्यम से लावा, गैस, धूँआ, राख, कंकड़, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं। इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्राकृतिक पथ या नाली द्वारा होता है। इसे निकास नलिका कहते हैं। लावा धरातल पर आने के लिए एक छिद्र बनाता है, इसे विवर या क्रेटर कहते हैं और एक शंक्वाकार पर्वत बनाता है। जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।
ज्वालामुखी कैसे फटता है
ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया दो रूपों में होती है। पहली प्रक्रिया भूपृष्ठ के ऊपर होती है। इस प्रक्रिया में लावा धरातल के नीचे पृथ्वी के आंतरिक भाग में विभिन्न गहराइयों पर ठंडा होकर जम जाता है और बैथोलिथ, लैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल, शीट, डाइक आदि रूपों को जन्म देता है। द्वितीय प्रक्रिया में लावा भूतल पर आकर ठंडा होने से जमता है और उससे विभिन्न प्रकार की भूआकृतियां बनती हैं।
ज्वालामुखी कैसे बनता है
ज्वालामुखी एक ऐसी प्राकृतिक संरचना है जो, जब फटती है तो जलाजल आ जाता है। ज्वालामुखी हमेशा से ही लोगों के लिए उत्सुक्ता का विषय रहा है। इसके शांत रहने पर लोग ये अंदाज तक नहीं लगा सकते कि ये अपने अंदर कितनी आग समेटे हुए है, परंतु जब यह फटते हैं तो आस पास सब कुछ तहस नहस हो जाता है। पृथ्वी पर तीन सतहे पायी जाती हैं- भूपर्पटी, मेंटल, क्रोड। जैसे जैसे हम बाहरी सतह से अंदर की ओर जाते हैं- पृथ्वी का तापमान बढ़ता है और क्रोड में जाने तक यह तापमान, 6000 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। यह तापमान सूर्य के बाहरी तापमान के बराबर है।
पृथ्वी की सतह में हमेशा हलचल चलती रहती है। टेक्टोनिक प्लेट्स एक जगह से दूसरी सरकती रहती हैं और कभी कभी एक दूसरे से टकरा भी जाती हैं। इसकी वजह से भारी प्लेट्स नीचे की ओर चली जाती हैं व हल्की प्लेट्स ऊपर की ओर जाती हैं। जिसकी वजह से पर्वतों का निर्माण होता है। जो प्लेट्स नीचे की ओर जाती हैं, पृथ्वी के केंद्र पर पहुँचने पर वहाँ की गर्मी से उसके अंदर मौजूद मैटल और चट्टाने पिघलने लगती हैं, जिससे मैग्मा का निर्माण होता है। और तेज गर्मी के कारण दबाव होने पर यह लावा धरती के ऊपर लावा के रूप में निकल जाता है। ज्वालामुखी के जिस छिद्र से लावा बाहर आता है, उसे ज्वालामुख कहते हैं।
ज्वालामुखी विस्फोट से ऊँचाई तक उछलता हुआ लावा बाहर आता है और इसके साथ ही जलवाष्प, कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन, हीलियम आदि बाहर आते हैं। इसमें सबसे अधिक मात्रा में जलवाष्प पाया जाता है। इसके अतिरिक्त लावा के साथ धूल एवं राख से बने पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े भी बाहर निकलते हैं।
ज्वालामुखी के कारण
ज्वालामुखी का जन्म पृथ्वी के आंतरिक भाग में होता है। जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से नही देख सकते। ज्वालामुखी विस्फोट निम्नलिखित कारणों से होता है –
भूगर्भीय ताप का अधिक होना
पृथ्वी के भूगर्भ में अत्यधिक ताप होता है। यह उच्च तापमान वहाँ पर पाये जाने वाले रेडियोधर्मी प्रक्रमों तथा ऊपरी दबाव के कारण होता है। साधारण रूप से 32 मीटर की गहराई पर पदार्थ पिघलने लगता है और भूतल के कमजोर भागों को तोड़कर बाहर निकल आता है। इसे ज्वालामुखी विस्फोट कहते हैं।
कमजोर भूभाग का होना
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए कमजोर भूभाग होना अतिआवश्यक है। ज्वालामुखी पर्वतों का विश्व वितरण देखने से स्पष्ट हो जाता है कि संसार के कमजोर भूभागों से ज्वालामुखी के निकट संबंध महै। प्रशांत महासागर के तटीय क्षेत्रों, पश्चिमी द्वीप समूह और एंडीज पर्वत क्षेत्र इस तथ्य का प्रमाण देते हैं।
गैसों की उपस्थिति
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए गैसों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। वर्षा का जल भू पटल की दरारों तथा रंध्रों द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भागों में पहुँच जाता है और वहाँ पर अधिक तापमान के कारण जलवाष्प में बदल जाता है। समुद्र तट के नजदीक समुद्री जल भी रिसकर नीचे की ओर चला जाता है और जलवाष्प बन जाता है। जब जल से वाष्प बनता है तो उसका आयतन एवं दबाव काफी कमजोर स्थान पाकर विस्फोट के साथ बाहर निकल आता है। इसे ज्वालामुखी कहते हैं।
भूकंप
भूकंप से भू-पृष्ठ पर विकार उत्पन्न होता है और भ्रंश पड़ जाते हैं। इन भ्रंशों से पृथ्वी के आंतरिक भाग में उपस्थित मैग्मा धरातल पर आ जाता है और ज्वालामुखी विस्फोट होता है।
ज्वालामुखी के प्रकार
ज्वालामुखी को उसकी विस्फोटकता प्रवृत्ति व प्रभाविक्ता के आधार पर पाँच भागों में बाटा गया है।
ढाल ज्वालामुखी
यह धरती पर पाए जाने वाले सभी ज्वालामुखियों में सबसे बड़े होते हैं। इसका कारण है इससे प्रवाहित होने वाला लावा या मैग्मा। इस ज्वालामुखी की संरचना ढाल के समान होती है। यह बसाल्ट के बने होते हैं। बसाल्ट एक प्रकार की चट्टान है जो बेहद तरलीय प्रकार के लावा से बनती है। इसका भीतरी भाग एक शंकु के आकार का होता है।
समग्र ज्वालामुखी
यह ज्वालामुखी बसाल्ट के मुकाबले ठंडे व गाढ़े लावे का बना होता है। यह एक भयानक दबाव बनाते हुए विस्फोट करता है। यह लावा के साथ साथ, गैसें, जलवाष्प, धुँआ, धूल आदि भी विस्फोट करता है।
कालडेरा ज्वालामुखी
यह एक अत्यधिक विस्फोटक ज्वालामुखी है। इसमें अम्लीय प्रवृत्ति का लावा निकलता है। इसकी विस्फोटकता इसमें उपस्थित लावा की मात्रा को दर्शाती है। इस ज्वालामुखी के कारण सतह का बहुत बड़ा भाग भीतर धस जाता है। कई बार इससे तालाब भी बनते हैं। यह अक्सर गर्म पानी की झीलों का श्रोत भी होता है।
फ्लड बसाल्ट ज्वालामुखी
यायह एक ऐसा ज्वालामुखी है जिसमें अत्यधिक मात्रा में बसाल्ट का विस्फोट होता है और यह विस्फोट एक बड़े क्षेत्र में फैलता है। यह बाढ़ के समान होता है। यह एक बहुत बड़े क्षेत्र में जाकर उसे लावा में समा लेता है। इसमें अन्य ज्वालामुखियो की भाँति कोई संरचना देखने को नहीं मिलती बल्कि यह ज्वालामुखी विस्फोट के कारण लावा फैलने वाले क्षेत्र में जमीन पर परत आ जाती है।
मध्य महासागर ज्वालामुखी
यह ज्वालामुखी महासागरों के भीतर बनते हैं। महासागरों के भीतर की महासागरीय प्लेटें अत्यधिक मात्रा में क्रियाशील रहती हैं। ये नष्ट भी होती हैं व इनकी पुनः उत्पत्ति भी होती है। इसके कारण महासागरों के भीतर आसमान सतह का वितरण होता है। जब महासागरों में किसी स्थान पर ज्वालामुखी का विस्फोट होता है तो यह धीरे धीरे पहले छोटे छोटे पहाड़ बनाता है। यह पहाड़ एक श्रेणि में बने होते हैं जो कि 70000 किलोमीटर तक लंबी होती हैं। इसका बीच का भाग अधिकतर विस्फोटक रहता है।
ज्वालामुखी विस्फोट से बाहर निकालने वाले पदार्थ
ज्वालामुखी विस्फोट के कारण ठोस, तरल व गैस तीनों प्रकार के पदार्थ बाहर निकलते हैं।
ठोस पदार्थ
ज्वालामुखी विस्फोट से बारीक धूल कण तथा राख से बने हुए कई टन भार वाले शिलाखंड भी बाहर निकलते हैं।
तरल पदार्थ
गैसीय पदार्थ
ज्वालामुखी विस्फोट के समय कई प्रकार की गैसें निकलती हैं। इसमें- हिड्रोजन सलफाइड, कार्बन डाइ आक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं अमोनिया क्लोराइड प्रमुख हैं। इसमें जलवाष्प का महत्व सबसे अधिक है।
ज्वालामुखी के प्रभाव
जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार ज्वालामुखी भी पृथ्वी को सकरात्मक व नकारात्मक दोनों रूप से प्रभावित करती है। ज्वालामुखी विस्फोट कई नुकसान करते हैं तो कई प्रकार से फायदेमंद भी साबित होते हैं।
सकरात्मक प्रभाव
- माना जाता है कि धरती का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ज्वालामुखी विस्फोट से बना है। करोड़ों साल पहले पृथ्वी का निर्माण के समय ज्वालामुखी का अहम। योगदान माना जाता है।
- इटली के विस्टवियस ज्वालामुखी की जमीन फलों के बगीचे के लिए एक वरदान साबित हुई है।
- धान की खेती के मामले में जापान एवं फिलिपिन भी प्रसिद्ध है जिससे मनुष्य ने भरपूर लाभ उठाया है।
- ये उदाहरण हैं कि ज्वालामुखी पर्वतों की तलहटियां लाखों करोड़ों साल बाद अधिक उपजाऊ हो जाती हैं क्योंकि लावा के कारण मिट्टी में पहले ही वृक्ष वनस्पतियों के लिए उपयोगी लवण होते हैं।
- लावा से कालांतर में काली मिट्टी का निर्माण होता है जिससे गन्ना तथा कपास की फसल अच्छी होती है।
- अमेरिका के अधिकांश ज्वालामुखी पर्वतों के उपतिकाओं में कहवे की बागवानी काफी अच्छी हो जाती है।
- ठंडे ज्वालामुखी के लावे में कई प्रकार के उपयोगी पदार्थ पाए जाते हैं, जैसे- ओसीडियन, यह एक प्रकार का काँच है जो अपनी चमक व स्वच्छता के लिए प्रसिद्ध है।
- ज्वालामुखी की दूसरी देन भ्रामक पत्थर भी है। यह एक बेहद उपयोगी पत्थर है। इमारतों के निर्माण व झामे के तौर पर इसका उपयोग किया जाता है।
- समुद्रतल व कई पहाड़ भी ज्वालामुखी की देन हैं
- इससे निकली गैसों से वायुमंडल की रचना हुई है।
- भूगोलशास्त्रियों के मुताबिक युरोप, अफ्रीका व एशिया के अधिकतर ऊँचे पर्वत, ज्वालामुखी पर्वतों की क्रियाशीलता से ही उत्पन्न हुए हैं।
- इसके अलावा ज्वालामुखी विस्फोट से कार्बन डाइ ऑक्साइड निकलती है जो की वनस्पतिओं के लिए आवश्यक है।
- ज्वालामुखी के कारण झीलों का निर्माण भी होता है, जो जल संचय का माध्यम बनती हैं।
- इससे पठारों की श्रृंखला का निर्माण होता है, जिसके पत्थर से मकान, पुल, सड़कें आदि का निर्माण होता है। साथ में ज्वालामुखी द्वारा उत्पन्न सैडल रीफ में अत्यधिक मात्रा में सोना मिलता है।
- ज्वालामुखी से सभी प्रकार के धातुओं का निर्माण होता है। दक्षिण अफ्रीका का किंबरलाइफ चट्टान जिसमें विश्व का अधिकतम हीरा पाया जाता है, ज्वालामुखी विस्फोट से ही बना है।
नकारात्मक प्रभाव
- ज्वालामुखी विस्फोट के समय बड़ी मात्रा में तप्त लावा, ठोस, शैलखंड, विषैली गैसें आदि भूमि तथा वायुमंडल में फैल जाते हैं। जो कि जीवों व मानवाकृत संरचनाओं को भारी क्षति पहुँचाते हैं।
- लावा की गर्मी के कारण कई बार वनों में आग लग जाती है।
- लावा वनस्पतियों व भौतिक वस्तुओं के विनाश का कारण होता है।
- ज्वालामुखी विस्फोट भूकंप का कारण बनता है।
ज्वालामुखी से बचने के उपाय
प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य के नियंत्रण के बाहर होती हैं। परंतु यदि पुर्वानुमान लगा लिया जाए तो इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। ज्वालामुखी विस्फोट के आस पास घर या आबादी होने की स्थिति में स्थान छोड़ देना चाहिए।
रेडियो व अन्य माध्यमों से संपूर्ण व पुख्ता जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। विस्फोट के समय बाहर होने की स्थिति में भवनों में आश्रय लेनी चाहिए। अपने नाक व मुँह को रुमाल से ढककर रखना चाहिए। आग लगने की संभावना होने पर ज्वलनशील पदार्थों को दूर कर देना चाहिए।
विश्व का सबसे बड़ा ज्वालामुखी
विश्व का सबसे बड़ा ज्वालामुखी हवाई का मौना लोआ ज्वालामुखी है। इसकी ऊँचाई 13600 फीट से ज्यादा है। यह ढाल ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी हवाई द्वीप का लगभग 51 प्रतिशत हिस्सा बनाता है। इसका विस्फोट इतना भयानक था कि इससे आकाश लाल दिखने लगा था। इसके विस्फोट का कारण भूकंप को माना जाता है। यह लगभग 300,000 साल तक पहले समुद्र तल से ऊपर उभरा था, तभी से यह तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रहा है। इसने लगभग दो दर्जन इमारतों को नष्ट कर दिया और एक मील से अधिक राजमार्ग को दफन कर दिया था।
भारत का सबसे बड़ा ज्वालामुखी
बैरन द्वीप ज्वालामुखी भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है। यह अंडमान निकोबार द्वीप समूह में है। करीब डेढ़ सौ साल तक शांत रहने के बाद 1991 में यह सक्रिय हो गया था। यह ज्वालामुखी 24 अगस्त 2005 को फटा था। इसकी गति के कारण 26 दिसंबर को सुनामी आई थी। यह लावा, चट्टान के टुकड़े और राख से बना एक स्ट्रेटोवोल्केनो है। यह लगभग 3 किलोमीटर तक फैला है। इसकी ऊँचाई 353 मीटर या 1158 फीट है।
ज्वालामुखी क्या होता है?
ज्वालामुखी पृथ्वी पर घटित होने वाली एक आकस्मिक घटना है। जिससे भूपटल पर अचानक विस्फोट होता है। जिसके माध्यम से लावा, गैस, धूँआ, राख, कंकड़, पत्थर आदि बाहर निकलते हैं। इन सभी वस्तुओं का निकास एक प्राकृतिक पथ या नाली द्वारा होता है। इसे निकास नलिका कहते हैं। लावा धरातल पर आने के लिए एक छिद्र बनाता है, इसे विवर या क्रेटर कहते हैं और एक शंक्वाकार पर्वत बनाता है। जिसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।
ज्वालामुखी कैसे फटता है?
ज्वालामुखी विस्फोट की प्रक्रिया दो रूपों में होती है। पहली प्रक्रिया भूपृष्ठ के ऊपर होती है। इस प्रक्रिया में लावा धरातल के नीचे पृथ्वी के आंतरिक भाग में विभिन्न गहराइयों पर ठंडा होकर जम जाता है और बैथोलिथ, लैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल, शीट, डाइक आदि रूपों को जन्म देता है। द्वितीय प्रक्रिया में लावा भूतल पर आकर ठंडा होने से जमता है और उससे विभिन्न प्रकार की भूआकृतियां बनती हैं।
ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं?
1. ढाल ज्वालामुखी
2. समग्र ज्वालामुखी
3. कालडेरा ज्वालामुखी
4. फ्लड बसाल्ट ज्वालामुखी
5. मध्य महासागर ज्वालामुखी
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निष्कर्ष –
उक्त लेख में आपने जाना कि ज्वालमुखी क्या होता है, ज्वालामुखी की परिभाषा क्या होती है के बारे में विस्तार से बताया है। अगर आपको ज्वालामुखी के बारे में कोई प्रश्न हो तो हमे कमेंट में बताए आपको Jwalamukhi Kya Hota Hai और Jwalamukhi Kaise Fatta Hai की ओर सही से इन्फॉर्मेशन देने की कोशिश करेंगे।
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